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Monday, May 31, 2010

जागीर

लम्हों की जागीर लूटाकर बैठे है,
हम घर की दहलीज़ पे आकर बैठे है.

लिखने को कहानी कहा से लाये अब,
कागज़ से एक नाम मिटाकर बैठे है.

वो चाहे तो हँस कर दो पल बात करो,
हम परदेशी दूर से आकर बैठे है.

उठेंगे जब दिल तेरा भर जाएगा,
खुद को तेरा खेल बनाकर बैठे है.

जब चाहो गुल शमा कर देना आबाद,
हम अन्दर का दिप जलाकर  बैठे है.

Friday, May 28, 2010

दर्द

मौसम आयेंगे जायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

जाड़ो की बहार जब आएँगी,
धूप आँगन में लहरायेंगी,
गुल दोपहर मुस्कायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

शाम आ के चराग जलाएँगी,
जब रात बड़ी हो जायेंगी,
और दिन छोटे हो जायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

जब गर्मी के दिन आयेंगे,
तपती दोपहरे लायेंगे,
सन्नाटे शोर मचाएंगे,
गल्ली में धूल उड़ायेंगे,
पत्ते पीले हो जायेंगे,
जब फूल सभी मुरझायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

जब बरखा की रूत आएँगी,
हरयाली साथ में लायेंगी,
जब काली बदली छायेंगी,
इक याद हमें तडपायेगी,
दो नैना नीर बहायेंगी,
हम तुम को भूल न पायेंगे,

मौसम आयेंगे जायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

Wednesday, May 26, 2010

सदमा

आज कल जब भी,
कुछ शिकन आती है,
कुछ अदावत भी पर,
तुम से आती है.

ना जाने कैसा रिश्ता,
हो गया दर्द से,
हर दर्द की सदा,
तुम से आती है.

तुम ना जाने क्यों,
कर सदा नहीं देते,
यही बात है की जो,
तुम से आती है.

हर राह में मिलेंगे,
तुम्हे हमराह बहोत,
पर वक़्त-ए-सदमा-ओ-'पाशा',
तुम से आती है.

Saturday, May 22, 2010

दास्ताने प्यार

नज़र मुझ से मिलाती हो,
तो तुम, शरमा सी जाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

ज़बा खामोश है लेकिन,
निगाहें बात करती है,
अदाये लाख भी रोको,
अदाये बात करती है,
नज़र निची किये दाँतों में,
उंगली को दबाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

छुपाने से मेरी जानम,
कही क्या प्यार छुपता है,
ये ऐसा पुष्प है खुशबू ,
हमेशा देता रहता है,
तुम तो सब जानती हो,
फिर भी क्यु, मुझको सताती हो,
इसी को प्यार कहते है.

तुम्हारे प्यार का ऐसे,
हमें इज़हार मिलता है,
हमारा नाम सुनते ही,
तुम्हारा रंग खिलता है,
और फिर साज़ दिल पर तुम,
हमारे गीत गाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

तुम्हारे घर मै जब आऊ,
तो छुप जाती हो परदे में,
मुझे जब देख ना पावो,
तो घबराती हो परदे में,
खुद ही चिलमन उठा कर,
फिर इशारों से बुलाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

Wednesday, May 19, 2010

मुश्किलिया

मुश्किलिया जिंदगी में, यू चल पड़े है,
हम संभले ही ना थे, के फिर गिर पड़े है.

मंजिल तो सामने, दिखाई देती है,
पर रास्तो में, गुब्बार ही गुब्बार भरे पड़े है.

किसकी बात का भरोसा, रखे ये दिल,
चेहरे पे नकाब ओढ़े, सारे दोस्त पड़े है.

अब जिंदगी, इक बदगुमा सी लगे,
और, मौत का साया भी "पाशा",
दूर साहिल पे पड़े है.

Monday, May 17, 2010

प्यार

जब प्यार नहीं है तो,
भुला क्यु नहीं देते,
ख़त किस लिए रखे है,
जला क्यु नहीं देते.

किस वास्ते लिखा है,
हथेली पे मेरा नाम,
मै हर्फ़-ए-गलत हू तो,
मिटा क्यु नहीं देते.

लिलाह शबो रोज़ की,
उलझन से निकालो,
तुम मेरे नहीं हो तो,
बता क्यु नहीं देते.

रह रह के न तड़पाओ,
ऐ बेदर्द मसीहा,
हाथो से मुझे जहर,
पीला क्यु नहीं देते.

जब इसकी वफ़ाओ पे,
यकी तुमको नहीं है,
हसरत को निगाहों से,
गिरा क्यु नहीं देते.

Saturday, May 15, 2010

अंजाम

जब से उसने शहर को छोड़ा,
हर रास्ता सुनसान हुआ,
अपना क्या है सारे शहर का,
एक जैसा नुकसान हुआ.

मेरे हाल पे हैरत कैसी,
दर्द के तनहा मौसम में,
पत्थर भी रो पड़े है,
इंसान तो फिर इंसान हुआ.

उस के ज़ख्म छुपा के रखिये,
खुद उस शख्स की नज़रों से,
उस से कैसा शिकवा कीजिये,
वो तो अभी नादान हुआ.

यु भी कम मिलता था,
वो इस शहर के लोगों में,
लेकीन मेरे सामने आकर,
"पाशा" और ही कुछ अंजाम हुआ.

इक लड़की

वो कैसी पागल लड़की थी,
वो ऐसी पागल लड़की थी,

रातों को उठ-उठ कर,
ख्वाबों का तसवुर करती थी.

आखों में ख़ाब सजाये,
होने का तसवुर करती थी.

नींद के गहरे झोके में,
चलने का तसवुर करती थी.

पतझड़ के बेमानी मौसम में,
फूलों का तसवुर करती थी.

मेरा नाम रेत पे लिख कर,
पढ़ने का तसवुर करती थी.

वो कैसी पागल लड़की थी
वो ऐसी पागल लड़की थी.

Thursday, May 13, 2010

हसरते

दयार-ए-गैर में कैसे,
तुझे सदा देते,
तू मिल भी जाता तो,
तुझे गवां देते.

तुम्ही ने हम को सुनाया,
ना अपना दुःख वरना,
दुवा वो करते के,
हम आसमा को हिला देते.

हम में ये जोम रहा,
की अब के वो पुकारेंगे,
उन्हें ये जिद थी के,
हर बार हम सदा देते.

वो तेरा गम था,
की तासीर मेरे लहजे की,
के जिसको हाल सुनाते,
उसे रुला देते.

तुम्हे भुलाना ही अव्वल,
तो दसतारस में नही,
जो इक्तियार में भी होता,
तो क्या भुला देते.

तुम्हारी याद ने,
कोई जवाब ही ना दिया,
मेरे ख़याल के आसूं,
रहे सदा देते.

कानो को मै ता-उम्र,
कोसता शायद,
वो कुछ ना कहते "पाशा"
मगर होटों को हिला देते.

Tuesday, May 11, 2010

ख्वाईश-ए-तमन्ना

किस्से तेरी नज़र ने,
सुनाये ना फिर कभी,
हमने भी दिल के दाग,
दिखाये ना फिर कभी.

ऐ याद-ए-दोस्त आज तू,
जी भर के दिल दूखा,
शायद ये रात हिज्र की,
आये ना फिर कभी.

वो मासूमियत दिल में,
मेरे रहेगी सदा, हाय!!
वापस लौटकर के यह दोस्त,
पाये ना फिर कभी.

मेरी आरज़ू विसाल-ए-दोस्त,
ना किसी हाल निबाई तूने,
तमन्ना-ए- दोस्ती "पाशा",
जागे ना फिर कभी.

Monday, May 10, 2010

राज़-ए-गुफ्तगू

देख लो ख़्वाब मगर,
ख़्वाब का चर्चा न करो,
लोग जल जायेंगे,
सूरज की तम्मना न करो.

वक़्त का क्या है,
किसी पल भी बदल सकता है,
हो सके तुमसे तो तुम,
मुझ पे भरोसा न करो.

झुरिया टूटे हुई अक्स,
की चूब जायेगी,
और कुछ रोज़ अभी,
आईना देखा न करो.

अजनबी लगने लगे तुम्हे,
खूद अपना ही वजूद,
अपने दिन रात को,
इतना अकेला न करो.

ख़्वाब खिलोनो की,
तरह होता है,
ख़्वाब देखा न करो,
ख़्वाब दिखाया न करो.

बे-खयाली में कभी,
उंगलियाँ जल जायेंगी,
राख गुज़रे हुए,
लम्हों की कुरेदा न करो.

मोम के रिश्ते है,
गर्मी में पिगल जायेंगे,
धूप के शहर में "पाशा"
अज़र-ए-तम्मना न करो.