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Wednesday, June 29, 2011

Shayari Sach Bolati hain

लाख परदों में रहूँ
भेद मेरे खोलती हैं
शायरी सच बोलती हैं.
मैंने देखा हैं की
जब मेरी जबा डोलती हैं
शायरी सच बोलती है

तेरा इसरार के
चाहत मेरी बेताब न हो
वाकिफ-ऐ-ग़म से मेरा
हल्का-ऐ-एहबाब न हो
तू मुझे जब्त के
सहेरा में क्यों रोलती हैं
शायरी सच बोलती है

ये भी क्या बात के
छुप-छुप के तुझे प्यार करू
गर कोई पूछ ही बैठे तो
मैं इनकार करू
जब किसी बात को
दुनिया की नज़र तोलती हैं
शायरी सच बोलती हैं

मैंने इस फ़िक्र में काटी
कई राते कई दिन
मेरे शेरो में
तेरा नाम ना आये लेकिन
जब तेरी सांस
मेरी सांस में रस घोलती हैं
शायरी सच बोलती हैं

तेरी जलवो का हैं
परतो मेरी इक इक ग़ज़ल
तू मेरे जिस्म का साया है
तो कतरा के ना चल
परदादारी तो खुद अपनाही
भरम खोलती हैं
शायरी सच बोलती हैं