अपनी नज़र से आज गिरा दीजिये मुझे,
मेरी वफ़ा की कुछ तो सजा दीजिये मुझे.
इक तरफ फैसले में इन्साफ था कहाँ,
मेरा कसूर क्या था बता दीजिये मुझे.
मै जा रहा हूँ, आऊँगा शायद ही लौट कर,
ऐसे न बार-बार सदा दीजिये मुझे.
कल की बात और है, मै रहूँ या ना रहूँ,
आज जितना जी चाहे, रुला दीजिये मुझे.
दोस्ती का यह क्या असर था "पाशा",
दुश्मनी की दुवाँ दीजिये मुझे.
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enthusism
Wednesday, March 31, 2010
Tuesday, March 30, 2010
तलाश
अपने दोस्त की जुबान सुनता मै,
अब हर रोज़ नई ज़िन्दगी जीता मै.
उन पुराने यादों का, क्या करू दोस्त,
दिल के किसी कोने में छिपाए फिरता मै.
हर सुबह जागा तो नया दिन था,
हुई शाम तो घर नया तलाशता मै.
उनकी पुरानी यादे ना रही,
इक नई जुज़त्जू को जाता मै.
दोस्ती का ये क्या हशर था "पाशा",
नए अक्स को ढूढता मै.
अब हर रोज़ नई ज़िन्दगी जीता मै.
उन पुराने यादों का, क्या करू दोस्त,
दिल के किसी कोने में छिपाए फिरता मै.
हर सुबह जागा तो नया दिन था,
हुई शाम तो घर नया तलाशता मै.
उनकी पुरानी यादे ना रही,
इक नई जुज़त्जू को जाता मै.
दोस्ती का ये क्या हशर था "पाशा",
नए अक्स को ढूढता मै.
Friday, March 26, 2010
ना-गवार
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे,
तू बहोत देर से मिला है मुझे.
हमसफ़र चाहिए हुज्जूम नहीं,
इक मुसाफिर भी काफिला है मुझे.
दिल धड़कता नहीं सुलगता है,
वो जो ख्वाहिश थी आ बला है मुझे.
लब खुशाहू तो इस यकीन से,
क़त्ल होने का हौसला है मुझे.
कौन जाने के चाहतों में, 'पाशा'
क्या गवाया है क्या मिला है मुझे.
तू बहोत देर से मिला है मुझे.
हमसफ़र चाहिए हुज्जूम नहीं,
इक मुसाफिर भी काफिला है मुझे.
दिल धड़कता नहीं सुलगता है,
वो जो ख्वाहिश थी आ बला है मुझे.
लब खुशाहू तो इस यकीन से,
क़त्ल होने का हौसला है मुझे.
कौन जाने के चाहतों में, 'पाशा'
क्या गवाया है क्या मिला है मुझे.
Thursday, March 25, 2010
yaaden jaanib
क्यु दोस्त याद आये इतना,
खो गया क्यु मै इतना.
वो तेरी बाते बड़ी तडपाये,
बता, कोन याद करेगा इतना.
ऐतबार ना था तुझे मेरा,
तो अब क्यों मुन्तजिर इतना.
ये जिगर ऐ 'पाशा' सही,
'तू' पर खुश रहे इतना.
खो गया क्यु मै इतना.
वो तेरी बाते बड़ी तडपाये,
बता, कोन याद करेगा इतना.
ऐतबार ना था तुझे मेरा,
तो अब क्यों मुन्तजिर इतना.
ये जिगर ऐ 'पाशा' सही,
'तू' पर खुश रहे इतना.
मुश्किलियाँ
वो हमें इस कदर आज़माते रहे,
मुश्किलिया हमारी बढाते रहे.
वो अकेले में भी जो लगाते रहे,
हो न हो हम उनको याद आते रहे.
याद करने पर भी दोस्त आये न याद,
दोस्तों के करम याद आते रहे.
प्यार से उनका इनकार है हक मगर,
लब क्यों देर तक थरथराते रहे.
आखे सुखी हुई नदीया मगर,
तुफ्फां बादस्तूर आते रहे.
थी कमाने हाथों में दुश्मनों की,
तीर मगर अपनो की जानिब से आते रहे.
कर लिया सब ने हम से किनारा मगर,
इक नक्श ए पागोश "पाशा" याद आते रहे.
मुश्किलिया हमारी बढाते रहे.
वो अकेले में भी जो लगाते रहे,
हो न हो हम उनको याद आते रहे.
याद करने पर भी दोस्त आये न याद,
दोस्तों के करम याद आते रहे.
प्यार से उनका इनकार है हक मगर,
लब क्यों देर तक थरथराते रहे.
आखे सुखी हुई नदीया मगर,
तुफ्फां बादस्तूर आते रहे.
थी कमाने हाथों में दुश्मनों की,
तीर मगर अपनो की जानिब से आते रहे.
कर लिया सब ने हम से किनारा मगर,
इक नक्श ए पागोश "पाशा" याद आते रहे.
bichade dost
बिछड़े दोस्त की याद में.................
वो कभी मिल जाए तो क्या कीजिये,
रात-दिन सूरत को देखा कीजिये.
चाँदनी रातो में इक-इक फूल को,
बेखुदी कहती है सजदा कीजिये.
जो तमन्ना बर ना आये उम्रभर,
उम्रभर उसकी तमन्ना कीजिये.
इश्क की रंगियों में डूबकर,
चाँदनी रातों में रोया कीजिये.
हम ही उसके इश्क के काबिल न थे,
क्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिये.
वो कभी मिल जाए तो क्या कीजिये,
रात-दिन सूरत को देखा कीजिये.
चाँदनी रातो में इक-इक फूल को,
बेखुदी कहती है सजदा कीजिये.
जो तमन्ना बर ना आये उम्रभर,
उम्रभर उसकी तमन्ना कीजिये.
इश्क की रंगियों में डूबकर,
चाँदनी रातों में रोया कीजिये.
हम ही उसके इश्क के काबिल न थे,
क्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिये.
Tuesday, March 23, 2010
wedding and funeral
फर्क सिर्फ इतना सा था.
तेरी डोली उठी,
मेरी मय्यत उठी,
फूल तुझ पर भी बरसे,
फूल मुझ पर भी बरसे,
फर्क सिर्फ इतना सा था,
तू सज गयी,
मुझे सजाया गया.
तू भी घर को चली,
मै भी घर को चला,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू उठ के गयी,
मुझे उठाया गया.
महफ़िल वहां भी थी,
लोग यहाँ भी थे,
फर्क सिर्फ इतना सा था
उनका हसना वहां,
इनका रोना यहाँ.
क़ाज़ी उधर भी था, मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढ़े, दो बोल मेरे पढ़े,
तेरा निकाह पढ़ा, मेरा जनाज़ा पढ़ा,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तुझे अपनाया गया,
मुझे दफनाया गया.
तेरी डोली उठी,
मेरी मय्यत उठी,
फूल तुझ पर भी बरसे,
फूल मुझ पर भी बरसे,
फर्क सिर्फ इतना सा था,
तू सज गयी,
मुझे सजाया गया.
तू भी घर को चली,
मै भी घर को चला,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू उठ के गयी,
मुझे उठाया गया.
महफ़िल वहां भी थी,
लोग यहाँ भी थे,
फर्क सिर्फ इतना सा था
उनका हसना वहां,
इनका रोना यहाँ.
क़ाज़ी उधर भी था, मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढ़े, दो बोल मेरे पढ़े,
तेरा निकाह पढ़ा, मेरा जनाज़ा पढ़ा,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तुझे अपनाया गया,
मुझे दफनाया गया.
Nasiib
वो ना दूर है, ना करीब है,
ये जो हिज्र है, ये नसीब है.
(हिज्र = दुरिया)
जो विसाल था, वो तो ख्वाब्ब था,
ये ख़याल कितना अजीब है.
(विसाल=सच्चाई)
वही आसूओं में, दूवाओं में,
वही सुख-दुःख में करीब है.
जो मै सोचता हूँ कह सकू,
मेरा हर्फ़-हर्फ़, रकीब है.
(हर्फ़-हर्फ़ = अन्दर का दुःख) (रकीब= भगवान)
ये फलक ज़मीन को समेट ले,
मेरा दिल भी कितना गरीब है.
(फलक = आसमान)
ये जो हिज्र है, ये नसीब है.
(हिज्र = दुरिया)
जो विसाल था, वो तो ख्वाब्ब था,
ये ख़याल कितना अजीब है.
(विसाल=सच्चाई)
वही आसूओं में, दूवाओं में,
वही सुख-दुःख में करीब है.
जो मै सोचता हूँ कह सकू,
मेरा हर्फ़-हर्फ़, रकीब है.
(हर्फ़-हर्फ़ = अन्दर का दुःख) (रकीब= भगवान)
ये फलक ज़मीन को समेट ले,
मेरा दिल भी कितना गरीब है.
(फलक = आसमान)
यादें-ए-दोस्त
ये दिल ना माने क्या करू,
और, कितनी रातों को तेरे नाम करू.
क्यूँ याद आता है इतना,
कितने, यादों को तेरे नाम करू.
लोग मुझे तेरा दीवाना कहे,
बस में, मेरे कुछ नहीं क्या करू.
अब तू ही इस रोग की दवा दे "पाशा",
दुवाएं, काम ना आए क्या करू.
और, कितनी रातों को तेरे नाम करू.
क्यूँ याद आता है इतना,
कितने, यादों को तेरे नाम करू.
लोग मुझे तेरा दीवाना कहे,
बस में, मेरे कुछ नहीं क्या करू.
अब तू ही इस रोग की दवा दे "पाशा",
दुवाएं, काम ना आए क्या करू.
Saturday, March 20, 2010
aarzoo
पाशा की कलम से ...........
कोई तुम से पूछे, कोन हूँ में?
तुम कह देना, कोई ख़ास नहीं,
इक दोस्त है, कच्चा पक्का सा,
इक झुट है, आधा सच्चा सा,
जज़बात को छिपाए इक परदा,
बस इक बहाना अच्छा सा,
जीवन का ऐसा साथी है,
जो दूर न हो के पास नहीं,
"पाशा" कोई खास नहीं?
कोई तुम से पूछे, कोन हूँ में?
तुम कह देना, कोई ख़ास नहीं,
इक दोस्त है, कच्चा पक्का सा,
इक झुट है, आधा सच्चा सा,
जज़बात को छिपाए इक परदा,
बस इक बहाना अच्छा सा,
जीवन का ऐसा साथी है,
जो दूर न हो के पास नहीं,
"पाशा" कोई खास नहीं?
Friday, March 19, 2010
mushkilen
खाली वक़्त ने, दिमाग उलझा दिया,
हर वक़्त सोचु, कुछ हो कुछ हो,
इसी कुछ-कुछ ने, दिल को उलझा दिया.
दिन भर ख्यालों का मेला रहा,
कुछ अच्छा कुछ बुरा ही बुरा रहा,
इसी बुरे ने, गैर को पास कर दिया.
दिन में है, यह आलम,
रात में ना जाने क्या हो, "पाशा"
इसी ख़याल ने, रात को उलझा दिया.
दिन का सुकून, रात की नींदे,
यु ही खराब होती नज़र आती है,
इसी मुश्किलों ने, जीना दुशवार कर दिया.
हाय हाय ये बैचैनी, हाय हाय ये दुशवारी,
किस का है ये ख़याल-ए-इल्म,
इसी से 'पाशा' ए जीवन उलझा दिया.
हर वक़्त सोचु, कुछ हो कुछ हो,
इसी कुछ-कुछ ने, दिल को उलझा दिया.
दिन भर ख्यालों का मेला रहा,
कुछ अच्छा कुछ बुरा ही बुरा रहा,
इसी बुरे ने, गैर को पास कर दिया.
दिन में है, यह आलम,
रात में ना जाने क्या हो, "पाशा"
इसी ख़याल ने, रात को उलझा दिया.
दिन का सुकून, रात की नींदे,
यु ही खराब होती नज़र आती है,
इसी मुश्किलों ने, जीना दुशवार कर दिया.
हाय हाय ये बैचैनी, हाय हाय ये दुशवारी,
किस का है ये ख़याल-ए-इल्म,
इसी से 'पाशा' ए जीवन उलझा दिया.
udaasii
अजनबी खौफ फिजाओं में बसा हो जैसे,
शहर का शहर ही भूतों से भरा हो जैसे.
रात के पिछले पहर आती है आवाजे सी,
दूर शहरा में कोई चीख रहा हो जैसे.
दर ओ दीवार पे छाई है उदासी ऎसी,
आज हर घर से जनाज़ा सा उठा हो जैसे.
मुस्कुराता था दोस्ती के खातिर ऐ दोस्त मगर,
दुःख तो चहरे की लकीरों पे सजा हो जैसे.
अब अगर डूब गया भी तो मरूगा ना,
"पाशा" बहते पाणी पे मेरा नाम लिखा हो जैसे.
शहर का शहर ही भूतों से भरा हो जैसे.
रात के पिछले पहर आती है आवाजे सी,
दूर शहरा में कोई चीख रहा हो जैसे.
दर ओ दीवार पे छाई है उदासी ऎसी,
आज हर घर से जनाज़ा सा उठा हो जैसे.
मुस्कुराता था दोस्ती के खातिर ऐ दोस्त मगर,
दुःख तो चहरे की लकीरों पे सजा हो जैसे.
अब अगर डूब गया भी तो मरूगा ना,
"पाशा" बहते पाणी पे मेरा नाम लिखा हो जैसे.
yaaden
मोहब्बत सबको मिल जाए जरूरी तो नहीं,
वह भी हमें चाहें जरूरी तो नहीं.
एक बेखबर - बेपरवाह दुनिया बनायी थी हमने,
ये हसी दुनिया भूल जाए जरूरी तो नहीं.
उनके साथ का एक-एक पल हसी था मगर,
फिर वो पल मिल जाए जरूरी तो नहीं.
कुछ लोग बहुत याद आते हैं दिल को,
हम भी उनकी याद बन जाए जरूरी तो नहीं.
ऐ दुनिया के हमराही, मुबारक हो राहें तेरी,
"पाशा" भी हमराह हो ये जरूरी तो नहीं.
वह भी हमें चाहें जरूरी तो नहीं.
एक बेखबर - बेपरवाह दुनिया बनायी थी हमने,
ये हसी दुनिया भूल जाए जरूरी तो नहीं.
उनके साथ का एक-एक पल हसी था मगर,
फिर वो पल मिल जाए जरूरी तो नहीं.
कुछ लोग बहुत याद आते हैं दिल को,
हम भी उनकी याद बन जाए जरूरी तो नहीं.
ऐ दुनिया के हमराही, मुबारक हो राहें तेरी,
"पाशा" भी हमराह हो ये जरूरी तो नहीं.
Thursday, March 18, 2010
Julmat
लब ऐ खामोशी से क्या होंगा,
दिल तो हर हाल में रुसवा होंगा.
ज़ुल्मत ऐ शब् में भी शरमाते हो,
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होंगा.
जिस भी फनकार का शाहकार हो तुम,
उसने सदिया तुम्हे सोचा होंगा.
कीस क़दर कब्र से चटकी है कली,
शाख से गुल कोई टुटा होंगा.
सारी दुनिया हमें पहचानती है,
"पाशा" कोई हमसा भी ना तनहा होंगा.
दिल तो हर हाल में रुसवा होंगा.
ज़ुल्मत ऐ शब् में भी शरमाते हो,
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होंगा.
जिस भी फनकार का शाहकार हो तुम,
उसने सदिया तुम्हे सोचा होंगा.
कीस क़दर कब्र से चटकी है कली,
शाख से गुल कोई टुटा होंगा.
सारी दुनिया हमें पहचानती है,
"पाशा" कोई हमसा भी ना तनहा होंगा.
juunun e dostii
क्या रुखसत ऐ यार की घडी थी,
हसती हुई रात भी रो पड़ी थी.
हम खुद ही हुए तबाह वरना,
दुनिया को हमारी क्या पड़ी थी.
ये ज़ख्म है उन दिनों की यादें,
जब आपसे दोस्ती बढी थी.
जाते तो किधर को तेरे वहसी,
ज़ंजीर ऐ जूनून कड़ी पड़ी थी.
गम थे की आंधिया थी,
"पाशा" ऐ दिल की पंखुड़ियां,
बिखरी पड़ी थी.
हसती हुई रात भी रो पड़ी थी.
हम खुद ही हुए तबाह वरना,
दुनिया को हमारी क्या पड़ी थी.
ये ज़ख्म है उन दिनों की यादें,
जब आपसे दोस्ती बढी थी.
जाते तो किधर को तेरे वहसी,
ज़ंजीर ऐ जूनून कड़ी पड़ी थी.
गम थे की आंधिया थी,
"पाशा" ऐ दिल की पंखुड़ियां,
बिखरी पड़ी थी.
chaahat, durrii
कुछ ना किसी से बोलेंगे,
तन्हाई में रो लेंगे,
हम बेराह बारों का क्या?
साथ किसी के हो लेंगे.
खुद तो हुए रुसवा लेकीन,
तेरे भेद ना खोलेंगे.
जीवन जहर भरा सागर,
कब तक अमृत घोलेंगे.
नींद तो क्या आएगी "पाशा"
मौत आई तो सो लेंगे.
तन्हाई में रो लेंगे,
हम बेराह बारों का क्या?
साथ किसी के हो लेंगे.
खुद तो हुए रुसवा लेकीन,
तेरे भेद ना खोलेंगे.
जीवन जहर भरा सागर,
कब तक अमृत घोलेंगे.
नींद तो क्या आएगी "पाशा"
मौत आई तो सो लेंगे.
Monday, March 15, 2010
यादें
इस तरह सताया है,
परेशान किया है,
ये या की दोस्ती नहीं,
एहसान किया है।
सोचा था की तुम
दूसरों जैसे नहीं होंगे,
तुमने भी वही काम,
मेरे यार किया है।
मुश्कील था बहोत,
मेरे लिए कराना तालूक,
ये काम भी तुमने,
मेरा आसान किया है।
हर रोज़ सजाते है,
तेरे हिज्र में गुंचे,
आखों को तेरी याद में,
"पाशा" ऐ गुलदान किया है।
परेशान किया है,
ये या की दोस्ती नहीं,
एहसान किया है।
सोचा था की तुम
दूसरों जैसे नहीं होंगे,
तुमने भी वही काम,
मेरे यार किया है।
मुश्कील था बहोत,
मेरे लिए कराना तालूक,
ये काम भी तुमने,
मेरा आसान किया है।
हर रोज़ सजाते है,
तेरे हिज्र में गुंचे,
आखों को तेरी याद में,
"पाशा" ऐ गुलदान किया है।
दुवा
तुम्हारी चाहत मिले न मिले,
तुझे चाहना मेरा नसीब है।
ये बात लकीरों की,
रकीब तो तेरे साथ है।
किससे करे गिला,
हर आदमी तेरे साथ है।
तन्हाई की इनायत ही सही,
हर दुवा तो तेरे साथ है।
जहा ऐ खुशिया मुबारक तुझे,
"पाशा" ऐ मौत तो मेरे साथ है.
तुझे चाहना मेरा नसीब है।
ये बात लकीरों की,
रकीब तो तेरे साथ है।
किससे करे गिला,
हर आदमी तेरे साथ है।
तन्हाई की इनायत ही सही,
हर दुवा तो तेरे साथ है।
जहा ऐ खुशिया मुबारक तुझे,
"पाशा" ऐ मौत तो मेरे साथ है.
Friday, March 12, 2010
दर्द
तर्क ऐ ताल्लुक आमादा है, मैं क्या करू?
क़यामत होने पे आमादा है, मैं क्या करू?
हर बात की वजह हो शायद,
बात बेवजह आमादा है, मैं क्या करू?
ज़िन्दगी खुशबू से भरी हो शायद,
'इंसान' पे वैशियत आमादा है, मैं क्या करू?
बहार पर गुन्छे खिलते हो शायद,
हर वक़्त पतझड़ ही आमादा है, मैं क्या करू?
अब ज़िन्दगी से जी भरा "पाशा" शायद,
ज़िन्दगी ऐ निजात आमादा है, मैं क्या करू ?
क़यामत होने पे आमादा है, मैं क्या करू?
हर बात की वजह हो शायद,
बात बेवजह आमादा है, मैं क्या करू?
ज़िन्दगी खुशबू से भरी हो शायद,
'इंसान' पे वैशियत आमादा है, मैं क्या करू?
बहार पर गुन्छे खिलते हो शायद,
हर वक़्त पतझड़ ही आमादा है, मैं क्या करू?
अब ज़िन्दगी से जी भरा "पाशा" शायद,
ज़िन्दगी ऐ निजात आमादा है, मैं क्या करू ?
जुदाई
टूटे हुए दिलों की, दुवा मेरे साथ है,
दुनिया तेरी तरफ है, खुदा मेरे साथ है।
गूंज तेरे बातों की नहीं है,
तो क्यां हुवा,
सागर के टूटने कि,
सदा मेरे साथ है।
तन्हाई किस को कहते है,
मुझको नहीं पता,
क्या जाने किस हसी कि,
दुवां मेरे साथ है।
पैमाना सामने है,
तो कुछ गम नहीं,
अब पाशा ऐ दर्द कि कोई,
दवा मेरे साथ है.
दुनिया तेरी तरफ है, खुदा मेरे साथ है।
गूंज तेरे बातों की नहीं है,
तो क्यां हुवा,
सागर के टूटने कि,
सदा मेरे साथ है।
तन्हाई किस को कहते है,
मुझको नहीं पता,
क्या जाने किस हसी कि,
दुवां मेरे साथ है।
पैमाना सामने है,
तो कुछ गम नहीं,
अब पाशा ऐ दर्द कि कोई,
दवा मेरे साथ है.
मगरूर निगाहें
कोई गर जिंदगानी और है,
अपने जी में हमने ठानी और है।
आतिश ऐ ज़हा मैं वो गरमी कहाँ,
दुःख भरी ज़िन्दगी मैं ख़ुशी और है।
इतनी देखी है उनकी रंजिशे,
पर अब कुछ के दिलजमाई और है।
देके ख़त मुहँ देखता है नामाकुल,
कुछ तो पैगाम ऐ जवानी और है।
क़त्ल आमादा है जूनून,
ऐ खुदा तेरी खुदाई और है।
हो चुके "पाशा" ऐ एतिहात तमाम,
ये मगरूर निगाहें मगर और है।
अपने जी में हमने ठानी और है।
आतिश ऐ ज़हा मैं वो गरमी कहाँ,
दुःख भरी ज़िन्दगी मैं ख़ुशी और है।
इतनी देखी है उनकी रंजिशे,
पर अब कुछ के दिलजमाई और है।
देके ख़त मुहँ देखता है नामाकुल,
कुछ तो पैगाम ऐ जवानी और है।
क़त्ल आमादा है जूनून,
ऐ खुदा तेरी खुदाई और है।
हो चुके "पाशा" ऐ एतिहात तमाम,
ये मगरूर निगाहें मगर और है।
dostii
दोस्ती की परवाह हम करे क्यों?
रहे इंतज़ार ऐ आलम, इत्मीनान करे क्यों ?
परदानशी ना सीखी इसपर चुप फिर भी हम,
अब तमन्ना ऐ दिल करार करे क्यों?
दोस्तों का आलम ये, किनारा है कर जाते,
अब ऐसे मई हम दिल की बात करे क्यों?
अब ऐसे दोस्ती पे एक्तियार नहीं शायद,
अब पाशा ऐ दिल बुत ऐ इंसान से दोस्ती करे क्यों?
रहे इंतज़ार ऐ आलम, इत्मीनान करे क्यों ?
परदानशी ना सीखी इसपर चुप फिर भी हम,
अब तमन्ना ऐ दिल करार करे क्यों?
दोस्तों का आलम ये, किनारा है कर जाते,
अब ऐसे मई हम दिल की बात करे क्यों?
अब ऐसे दोस्ती पे एक्तियार नहीं शायद,
अब पाशा ऐ दिल बुत ऐ इंसान से दोस्ती करे क्यों?
zindaadilli
वो मुझसे पूछे तुम लिखते कैसे हो ?
हम कहे तुम लिखाते कैसे हो ?
अपने हस्ती को आप जानिये तो जरा,
अपने शक्शियत को आप पहचानिए तो जरा,
अपने मैं इतने पहलुओं को छिपाते कैसे हो?
इस बज़्म मैं आप सा और कोई नहीं ,
शमा ऐ चिराग आप सा कोई नहीं ,
रोशन ऐ मंजिल आप से है तो,
अपने मैं इतनी आग छिपाते कैसे हो ?
अपने दुनिया में खुश हो पर,
पाशा पूछे अपने गम को छिपाते कैसे हो?
हम कहे तुम लिखाते कैसे हो ?
अपने हस्ती को आप जानिये तो जरा,
अपने शक्शियत को आप पहचानिए तो जरा,
अपने मैं इतने पहलुओं को छिपाते कैसे हो?
इस बज़्म मैं आप सा और कोई नहीं ,
शमा ऐ चिराग आप सा कोई नहीं ,
रोशन ऐ मंजिल आप से है तो,
अपने मैं इतनी आग छिपाते कैसे हो ?
अपने दुनिया में खुश हो पर,
पाशा पूछे अपने गम को छिपाते कैसे हो?
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