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Wednesday, October 28, 2015

एक बात जो कल कही,
दुखा गयी वो कल कही

थम गया है सिलसिला,
बात-ए-सुखन कल कही 

ऐसे ना  मेरे थे ज़ज्बात,
दोस्त बदला है कल कही 

ना उमीद कर दिया तूने,
शहर ने बात जो कल कही 

तू ही तू है जहन में मेरे,
कैसे यह तूने कल कही 

ना हो शरीक-ऐ-सुखन  "पाशा",
दर्द-ऐ-दिल बढ़ा जो कल कही