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Thursday, December 30, 2010

सच कहे हैं 'पाशा'

कुछ लोग बड़े ख़ास होते हैं,
वो तो दिल के पास होते हैं,
खुशबू सा अहसास ये,
सच कहे हैं 'पाशा'
जीने का अहसास होते हैं.

और कुछ नखरे होते हैं,
आँखों  के दर बंद होते हैं,
लौटने पर एक मुस्कान ये,
सच कहे हैं 'पाशा'
अंदाज़-ऐ-सौदाई होते हैं.

उफ़ तक ना हमसे होती हैं,
कल से आखें चार होती हैं,
दूसरो से बाते सरेआम ये,
सच कहे हैं 'पाशा'
अपने भी बेगाने होते हैं.

हर शेर उनके नज़र होते हैं,
कुछ दर्द-ऐ-बया होते हैं,
अजीब सी रंजीश ये,
सच कहे हैं 'पाशा'
दीवाने हम से ही होते हैं.

Monday, November 29, 2010

आग

जिंदगी एक बददुवा सी  लगती हैं,
हर ख़ुशी अधूरी सी लगती हैं.

बदल जाये ये हालात मेरे,
हर ठोकर चाहत सी लगती हैं.

अब रातो को हूँ जागता मैं,
नीद सुलगते संदल सी लगती हैं.

हर वक़्त दिल ने पुकारा तुझे,
धड़कने सीने में जलती सी लगती हैं.

कब बुझे आग मेरे दिल की,
अपनी राख भी अजनबी सी लगती हैं.

किस दिशा मे "पाशा" उठे कदम,
मौत भी मुझे परायी सी लगती हैं.

Friday, October 22, 2010

फ़रियाद

ऐ मेरे दो
जहान के मालिक
किस मस्जीद से
तुझे अजान दूँ

कब सुनेगा
फ़रियाद मेरी
कब होगी
मुराद पूरी

बना के मुझे
क्यु कर भूला
खाने को ठोकरे
किसके सहारे छोड़ा

कहे ऐ बुजुर्ग
मेरे मुझ से
तू है प्यासा
इबादत-ऐ-दिल के

कमी क्या थी
मेरी इबादत में
इतना तो बता
जो छोड़ा मझधार में

फिर पलटकर पूछूँगा
तुझसे क़यामत पर
क्यु कर मुक़दर
मेरा है मझधार पर

इल्ज़ाम तुझ पर
धरूँगा मैं ज़रूर
ये दोष तेरा तो
सज़ा सूनाउगा ज़रूर

तुज्हे भी अकेला
ही जीना होगा
और मिल्कीयत तेरी
दो जहान होगा

Monday, October 4, 2010

दर्द-ऐ-तड़प

ऐसे ही जिंदगी कटती रही,
अपने आप से शिकायते होती रही.

तेरा कसूर क्या इस में,
क्यु कर नसीबो की डोर टूटती रही.

अब सोच के हासिल भी नहीं,
दिल की मुराद पूरी कब होती रही.

अपनी ज़ुतजु में जीना है,
आरज़ू जिंदगी की छूटती रही.

मौत भी नहीं आती है,
ये तेरी तरह खिलवाड़ करती रही.

बता ऐ हम नफज़ मेरे,
मुझ से कौन सी कमी बाकी रही.

ना काबिल-ऐ-दुनिया मेरी,
मुझ पे यू बोझ  बनती रही.

ये तोहफा तेरा कबूल है,
मेरी आहे युही मगर जलती रही.

तेरा दिल भी तरसेगा कभी,
मेरी दर्द-ऐ-तड़प यह कहती रही.

सदके तेरे ये जिंदगी है,
मौत पाशा-ऐ-आगोश से लिपटी रही.

Saturday, August 21, 2010

हिदायते

किस तरह मै तुझे बताऊ,
चाहतो का सिलसिला आ बताऊ.

एक नज़र ही है ये जान लो,
उम्र भर अश्क का काफिला बताऊ.

सदा तो आती रहेगी चारसू,
दिल पर गुजरी घटाये बताऊ.

बरसी जो है आँख-ऐ-सौगाते,
चश्म-ऐ-बरसात को बताऊ.

हर समय की वो हिदायते,
या ये उनका है इलज़ाम बताऊ.

रफ़ाक़त के ना काबिल ही समझा,
अपने दिल की उलझन को बताऊ.

दिल को पर दुनिया से छुपाना,
और "पाशा" अपनो का भरम बताऊ.

Wednesday, August 18, 2010

आरजू

आँख से दूर ना हो दिल से उतर जाएगा,
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा.

इतना मायूस ना हो खिलावत-ऐ-गम से अपनी,
तू कभी खूद को देखेगा तो डर जाएगा.

तुम सर-ऐ-राह-ऐ-वफ़ा देखते रह जाओगे,
और वो बाम-ऐ-रफाकत से उतर जाएगा.

जिंदगी तेरी अता है तो ये जाननेवाला,
तेरी बक्षिश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा.

डूबते डूबते कश्ती को उछाल दे दूँ,
मैं नहीं तो कोई तो साहिल पे उतर जाएगा.

ज़ख़्म लाजिम है मगर दुःख है क़यामत का "पाशा"
ज़ालिम अब के भी ना रोयेंगा तो मर जाएगा.

Wednesday, July 28, 2010

फासले

फासले ना जाने कितने है,
ये सिलसिले ना जाने कितने है.

अब पास आना मुश्किल है,
ये सजाये ना जाने कितने है.

खामोश आहो से देंगे दूवाये,
आहे असरदार ना जाने कितने है.

काफिला तलाशता हूँ मैं,
राहे आसान ना जाने कितने है.

बिछड़े उनका क्या है "पाशा",
यादों में हम ना जाने कितने है.

Saturday, July 17, 2010

मतलब का यार

सच लोगो का कहना हुआ है,
मतलब का तू यार हुआ है.

खुशियों ने मुह मोड़ा है,
दिल टूटकर जार-जार हुआ है.

यह क्या कह दिया तूने के,
नश्तर सा चुबा हुआ है.

क्यु इतना गुरुर है तुझे,
क्या तू खुदा हुआ है.

दुवाए देते है तुझे "पाशा"
नाम मेरा बदनाम हुआ है.

Thursday, July 8, 2010

साथी

साथ निभाया हर एक वक़्त के बाद,
ज़िन्दगी कैसे कटे बिछड़ने के बाद.

जी भर गया मेरा तन्हाई से अब,
कौन जिये ज़िन्दगी मर जाने के बाद.

दुनिया से निभाई हर वफ़ा मैंने,
क्या याद ताल्लुक ऐ खुदगर्जी के बाद.

'पाशा' लौटकर तुझे दोस्त बनायेंगे,
इस ज़िन्दगी से निजात के बाद.

Tuesday, July 6, 2010

आखों का भरम

कुछ आखों का भरम रहने दो,
मुझको और पल दो पल जीने दो.

यादों के नस्तर दिल पे चलने दो,
हम डूबे तो अब डूब जाने दो.

इस बात से तुम को हया होने दो,
हम जान से गुजरते है गुजर जाने दो.

वक़्त का तकाजा ये सबब रहने दो,
आज तुम्हे कुछ पल बेवफा कहने दो.

वक़्त बदलता है तो बदलने दो,
गम ऐ गुबार दिल से बहने दो.

होशो में पूछेगें तुझे सबब दो,
पर आज इस बेखुदी में मरने दो.

उस तरफ की खुशिया रहने दो,
इस तरफ की गम ऐ रुखसत सहने दो.

महखाने के दर खुले रहने दो,
सरबत ऐ सुरूर से पहचान होने दो.

ये आखिरी 'पाशा' ऐ सलाम लेने दो,
फिर आस का कोई दिप जलने दो.

Saturday, July 3, 2010

बेदारी

इक ग़ज़ल उस पे लिखू, दिल का तकाजा है बहुत,
इन दिनों खुद से बिचड, जाने का डर है बहुत.

रात हो, दिन हो, गफलत हो की बेदारी हो,
उसको देखा तो नहीं है सोचा है बहुत.

तशनगी के भी मुकामत है क्या क्या, यानी,
कभी दरया नहीं काफी, कभी कतरा भी है बहुत.

मेरे हाथो की लकीरों के इजाफे है गवाह,
'पाशा' पत्थरो की तरह खुद को तराशा है बहुत.

Tuesday, June 29, 2010

जिलत

तमाम एतिहात हम से किये गये,
फिर भी दोस्त अपने राह चले गये.

हमने दी सदा-ओ-सदाए हर बार,
फिर भी क्यों कर तनहा छोड़ गये.

पहले कभी ना यु तोहफा दिया,
फिर वो इक शाम रुसवा कर गये.

और दुनिया में कितनी जिलत उठाये,
उन्हें बताये 'पाशा'  जहान से गुज़र गये.

Monday, June 28, 2010

वीराने

उस बादाखार को सोच ही रहे थे,
हुई क़यामत के वो सामने थे.

पाया हमने याद ओ असर आज,
जो बरसो तनहा छोड़ गए थे.

दिल में एक हूक जाग उठी तो है,
पर वो आज मिले जैसे पराये थे.

उम्मीद ओ चश्म की बुझ है गयी,
और वो कहे के साथी जनमों के थे.

आज भी मुझ से वो अनजाने लगे,
और भी 'पाशा' ऐ दिल में वीराने थे.

Saturday, June 19, 2010

आपकी प्रतिक्रया मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है,
कृपया अपनी बात लिखे.

मेरा ब्लॉग पढ़ने के लिए,
आपका बहुत धन्यवाद

इन्तहा

यू ना मिल मुझ से दुश्मन हो जैसे,
साथ चल मेरे दोस्त हो जैसे.

लोग यू देख कर हँस देते है,
तू मुझे भूल गया हो जैसे.

दोस्ती की इन्तहा इतनी ना बढ़ा,
यू ना इतरा खुदा हो जैसे.

ऐसे अनजान बने बैठे हो,
तुम को कुछ भी ना पता हो जैसे.

हिचकीया रात को आती रही,
तूने याद किया हो जैसे.

ज़िन्दगी कट रही है 'पाशा'
बेकसूरी की सज़ा हो जैसे.

मौत भी आयी इस नाज़ के साथ,
मुझ पे एहसान किया हो जैसे.

Friday, June 18, 2010

बेदिली

आज वो हमसे मिले शर्म-सार होकर,
निगाहें राहगीरों पर थी अनजान होकर.

वक़्त का तकाजा था सो चूप रह गए,
करम यारों के देखे बेजान होकर.

वो बेदिली सही के हाय हाय,
इंसान-ऐ-बुत हुए नादान होकर.

यारों की फितरते बदलते देखी,
जिये जाते है 'पाशा' पशेमान होकर.

दोस्ती

क्या खबर तुम को दोस्ती क्या है,
ये रोशनी भी अँधेरा भी है,
ख्वाहिशों से भरा जजीरा भी,
बहोत अनमोल एक हीरा भी है.

दोस्ती हसीन ख्वाब भी है,
पास से देखो तो शराब भी है,
दुःख मिलने पे ये अजीब है,
और यह प्यार का जवाब भी है.

दोस्ती यू तो माया जाल भी है,
एक हकीकत और ख्याल भी है,
कभी फुरक़त कभी विसाल भी है,
कभी ज़मीन तो फलक भी है.

दोस्ती झूठ तो सच भी है,
दिल में रह गई तो कसक भी है,
कभी ये हार कभी जीत भी है,
दोस्ती साज़ भी संगीत भी है,

शेर भी नज़्म भी गीत भी है,
वफ़ा क्या है वफ़ा भी दोस्ती है,
दिल से निकली दुआ भी दोस्ती है,
बस इतना समझ लो 'पाशा'
प्यार की इन्तेहा भी दोस्ती है.

Wednesday, June 16, 2010

इक शख्स

बना गुलाब तो काँटे चुभा गया एक शख्स,
हुआ चिराग तो घर ही जला गया इक शख्स.

तमाम रंग मेरे और सारे ख़्वाब मेरे,
फ़साना कह कर फ़साना बना गया इक शख्स.

मै किस हवा में उडूँ किस फ़ज़ा में लहराऊ,
दुखों के जाल हरसू बिछा गया इक शख्स.

पलट सकूँ मैं ना आगे बढ़ सकूँ जिस पर,
मुझे ये कौन से रास्ते लगा गया इक शख्स.

मुहब्बतें भी अजीब उस की नफरतें भी कमाल,
मेरी तरह का ही मुझ में समा गया इक शख्स.

वो माहताब था मरहम बादस्त आया था,
मगर कुछ और सिवा दिल दुखा गया इक शख्स.

खुला ये राज़ के आईनाखाना है दुनिया,
और इस में मुझ को 'पाशा' तमाशा बना गया इक शख्स.

खातिर

फिर उस से मिले जिसके खातिर,
बदनाम हुये, बदनाम हुये,
थे ख़ास बहुत अब तक या अली,
अबेआम हुये, बदनाम हुये.

दो लम्हे चाँदनी रातो के,
दो लम्हे प्यार की बातों के,
इल्ज़ाम हुये, बदनाम हुये.

यु तो ना गयी वहाँ कोई खबर,
पर आहो के खामोश असर,
पैगाम हुये, बदनाम हुये.

यु तो दिये कुछ सुख हमको,
पर उन से जो पहुँचे दुःख हमको,
इनाम हुये, बदनाम हुये.

जब होने लगे ये हाल अपने,
सब रौशन साफ़ ख़याल अपने,
इबहाम हुये, बदनाम हुये.

Monday, June 14, 2010

वाकया

शाम से आज सांस भारी है,
बेक़रारी है बेक़रारी है.

आप के बाद हर घडी हमने,
आप के साथ ही गुजारी है.

रात को दे दो चाँदनी कि रिदा,
दिन की चादर अभी उतारी है.

कल का हर वाकया तुम्हारा था,
आज की दास्ता 'पाशा' हमारी है.

गम

जब भी आँखों में अश्क भर आये,
लोग कुछ डूबते नज़र आये.

मुद्दते हो गयी सहर देखे,
कोई आहट कोई खबर आये.

चाँद जितने भी गम हुए शब के,
सब के इल्ज़ाम मेरे सर आये.

मुझको अपना पता ठिकाना मिले,
वो भी इक बार मेरे घर आये.

गुबार

मेरा क्या था तेरे हिसाब में,
मेरा सांस-सांस उधार था,
जो गुजर गया वो तो वक़्त था,
जो बचा रहा वो गुबार था.

तेरी आरज़ू में उड़े तो थे,
चंद खुश्क पत्ते चरार के,
जो हवा के दोष से गिर पड़ा,
उन में एक ये ख़ाक सार था.

वो उदास उदासी की शाम थी,
वो ही चेहरा एक चराग था,
और कुछ नहीं था जमीन पर,
एक आसमा का गुबार था.

बड़े सूफियो से ख़याल थे,
और बया भी उसका कमाल था,
कहा मैंने कब वही था वो,
एक शख्श था बादाखार था.

इंतज़ार

वो वो ना रहे,
जिनके लिए हम थे बेकरार,
अब कैसा इंतजार,
अजी किसका इंतज़ार
वो- वो ना रहे

Thursday, June 10, 2010

वफ़ा-ऐ-दोस्त

बात करनी मुझसे मुश्किल,
कभी ऎसी तो ना थी,
जैसी आज है तेरी महफ़िल,
कभी ऎसी तो ना थी.

ले गया छीन के कौन,
आज तेरा चश्म-ऐ-अंदाज़,
संगीन बेदिली ऐ दिल उनकी,
कभी ऎसी तो ना थी.

उनकी आखो ने खुदा,
जाने किया क्या जादू,
के तबीयत मेरी नासाज़,
कभी ऎसी तो ना थी.

क्या सबब तू जो बिघड़ता,
है 'पाशा' से हर बार,
ये तेरी अदा-ओ-वफ़ा-ऐ-दोस्त,
कभी ऎसी तो ना थी.

सज़ाये

चलो बाट लेते है अपनी सज़ाये,
ना तुम याद आओ ना हम याद आये.

सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा,
किसे याद रखे किसे भूल जाये.

उन्हें क्या खबर हो 'पाशा' आनेवाला ना आये,
बरसती रही है रातभर ये घटाये.

बेबाक

याद है सारे वो शुरू ऐ दोस्ती के मज़े,
दिल अभी भूला नहीं आगाज़ ऐ दोस्ती के मज़े.

मेरी जानिब से निगाह ऐ शौक़ की बेताबीया,
यार की जानीब से आगाज़ ऐ शरारत के मज़े.

हुस्न से अपने वो गाफिल थे, मै दोस्ती से,
अब कहाँ से लाऊ 'पाशा'  वो ना-खयाली के मज़े.

हुस्न मिला आज किस्सी राह गुज़र पर मुझसे,
ना वो नाज़-ओ-अंदाज़-ऐ-खुलियत-ओ-बेबाक के मज़े.

दोस्तों की इनायत

हम में जो आवारगी है,
यह हर दोस्तों की इनायत है.

वो हम से कुछ ना कहे,
पर क्या दोस्ती नहीं है.

निबायेंगे बात मानेंगे,
हमने ये कहा नहीं है.

फिर भी क़तरा जाते 'पाशा',
उनको किस बात का यकी नहीं है.

पहचान

ठहर जाओ के हैरानी तो जाये,
तुम्हारी शक्ल पहचानी तो जाये.

ऐ गम तू ही मेहमान बनके आजा,
हमारे दिल की वीरानी तो जाये.

ज़रा खुल कर रो लेने दो हम को,
के दिल की आग तक पानी हो जाये.

बला से तोड़ डालो आईनों को,
किसी सूरत-ऐ-'पाशा' हैरानी तो जाये.

Monday, June 7, 2010

दास्तान

शायरजी हमें कहते हो,
कब सुनते कब पढ़ते हो.

इस अदा को क्या कहें,
क्यु ज़ुल्म हम पर करते हो.

लिखे शेर दास्तान है,
जुल्म का ना जानते  हो.

बातें तेरी बंद है और,
जहाँ अपना समझते हो.

तड़प में कुछ कहेंगे "पाशा",
तो शायर कह कर हसती हो.

Thursday, June 3, 2010

सफ़र

तेरी दुनिया का सफ़र मुश्किल रहा,
क्यों कर जीना यहाँ दुशवार रहा.

फलक के लाखो सितारे गवाह है,
तेरा चाँद ही मेरा दुश्मन रहा.

दिल की आरजू तलाशता मै मगर,
यह तलाश बेचैनी का सबब रहा.

तू क्या चाहता है हर बार 'पाशा'
बराबर जो दर्द-ए-विसाल भूला रहा.

Tuesday, June 1, 2010

दोस्ती

वो तेरा बेरुखापन याद रहेगा,
पल पल का झूठ याद रहेगा.

नज़र किसी ओर रखकर भी,
कहना आपको देखा याद रहेगा.

हर नज़र से तो गैर किया,
ये आशना तेरा याद रहेगा.

यही तमन्ना है तो खुश हो जा,
अदावत-ए-रिश्ता मुझे याद रहेगा.

जो उपहार तूझे मिला है 'पाशा'
तो एहसान है सो याद रहेगा.

Monday, May 31, 2010

जागीर

लम्हों की जागीर लूटाकर बैठे है,
हम घर की दहलीज़ पे आकर बैठे है.

लिखने को कहानी कहा से लाये अब,
कागज़ से एक नाम मिटाकर बैठे है.

वो चाहे तो हँस कर दो पल बात करो,
हम परदेशी दूर से आकर बैठे है.

उठेंगे जब दिल तेरा भर जाएगा,
खुद को तेरा खेल बनाकर बैठे है.

जब चाहो गुल शमा कर देना आबाद,
हम अन्दर का दिप जलाकर  बैठे है.

Friday, May 28, 2010

दर्द

मौसम आयेंगे जायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

जाड़ो की बहार जब आएँगी,
धूप आँगन में लहरायेंगी,
गुल दोपहर मुस्कायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

शाम आ के चराग जलाएँगी,
जब रात बड़ी हो जायेंगी,
और दिन छोटे हो जायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

जब गर्मी के दिन आयेंगे,
तपती दोपहरे लायेंगे,
सन्नाटे शोर मचाएंगे,
गल्ली में धूल उड़ायेंगे,
पत्ते पीले हो जायेंगे,
जब फूल सभी मुरझायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

जब बरखा की रूत आएँगी,
हरयाली साथ में लायेंगी,
जब काली बदली छायेंगी,
इक याद हमें तडपायेगी,
दो नैना नीर बहायेंगी,
हम तुम को भूल न पायेंगे,

मौसम आयेंगे जायेंगे,
हम तुम को भूल ना पायेंगे.

Wednesday, May 26, 2010

सदमा

आज कल जब भी,
कुछ शिकन आती है,
कुछ अदावत भी पर,
तुम से आती है.

ना जाने कैसा रिश्ता,
हो गया दर्द से,
हर दर्द की सदा,
तुम से आती है.

तुम ना जाने क्यों,
कर सदा नहीं देते,
यही बात है की जो,
तुम से आती है.

हर राह में मिलेंगे,
तुम्हे हमराह बहोत,
पर वक़्त-ए-सदमा-ओ-'पाशा',
तुम से आती है.

Saturday, May 22, 2010

दास्ताने प्यार

नज़र मुझ से मिलाती हो,
तो तुम, शरमा सी जाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

ज़बा खामोश है लेकिन,
निगाहें बात करती है,
अदाये लाख भी रोको,
अदाये बात करती है,
नज़र निची किये दाँतों में,
उंगली को दबाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

छुपाने से मेरी जानम,
कही क्या प्यार छुपता है,
ये ऐसा पुष्प है खुशबू ,
हमेशा देता रहता है,
तुम तो सब जानती हो,
फिर भी क्यु, मुझको सताती हो,
इसी को प्यार कहते है.

तुम्हारे प्यार का ऐसे,
हमें इज़हार मिलता है,
हमारा नाम सुनते ही,
तुम्हारा रंग खिलता है,
और फिर साज़ दिल पर तुम,
हमारे गीत गाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

तुम्हारे घर मै जब आऊ,
तो छुप जाती हो परदे में,
मुझे जब देख ना पावो,
तो घबराती हो परदे में,
खुद ही चिलमन उठा कर,
फिर इशारों से बुलाती हो,
इसी को प्यार कहते है.

Wednesday, May 19, 2010

मुश्किलिया

मुश्किलिया जिंदगी में, यू चल पड़े है,
हम संभले ही ना थे, के फिर गिर पड़े है.

मंजिल तो सामने, दिखाई देती है,
पर रास्तो में, गुब्बार ही गुब्बार भरे पड़े है.

किसकी बात का भरोसा, रखे ये दिल,
चेहरे पे नकाब ओढ़े, सारे दोस्त पड़े है.

अब जिंदगी, इक बदगुमा सी लगे,
और, मौत का साया भी "पाशा",
दूर साहिल पे पड़े है.

Monday, May 17, 2010

प्यार

जब प्यार नहीं है तो,
भुला क्यु नहीं देते,
ख़त किस लिए रखे है,
जला क्यु नहीं देते.

किस वास्ते लिखा है,
हथेली पे मेरा नाम,
मै हर्फ़-ए-गलत हू तो,
मिटा क्यु नहीं देते.

लिलाह शबो रोज़ की,
उलझन से निकालो,
तुम मेरे नहीं हो तो,
बता क्यु नहीं देते.

रह रह के न तड़पाओ,
ऐ बेदर्द मसीहा,
हाथो से मुझे जहर,
पीला क्यु नहीं देते.

जब इसकी वफ़ाओ पे,
यकी तुमको नहीं है,
हसरत को निगाहों से,
गिरा क्यु नहीं देते.

Saturday, May 15, 2010

अंजाम

जब से उसने शहर को छोड़ा,
हर रास्ता सुनसान हुआ,
अपना क्या है सारे शहर का,
एक जैसा नुकसान हुआ.

मेरे हाल पे हैरत कैसी,
दर्द के तनहा मौसम में,
पत्थर भी रो पड़े है,
इंसान तो फिर इंसान हुआ.

उस के ज़ख्म छुपा के रखिये,
खुद उस शख्स की नज़रों से,
उस से कैसा शिकवा कीजिये,
वो तो अभी नादान हुआ.

यु भी कम मिलता था,
वो इस शहर के लोगों में,
लेकीन मेरे सामने आकर,
"पाशा" और ही कुछ अंजाम हुआ.

इक लड़की

वो कैसी पागल लड़की थी,
वो ऐसी पागल लड़की थी,

रातों को उठ-उठ कर,
ख्वाबों का तसवुर करती थी.

आखों में ख़ाब सजाये,
होने का तसवुर करती थी.

नींद के गहरे झोके में,
चलने का तसवुर करती थी.

पतझड़ के बेमानी मौसम में,
फूलों का तसवुर करती थी.

मेरा नाम रेत पे लिख कर,
पढ़ने का तसवुर करती थी.

वो कैसी पागल लड़की थी
वो ऐसी पागल लड़की थी.

Thursday, May 13, 2010

हसरते

दयार-ए-गैर में कैसे,
तुझे सदा देते,
तू मिल भी जाता तो,
तुझे गवां देते.

तुम्ही ने हम को सुनाया,
ना अपना दुःख वरना,
दुवा वो करते के,
हम आसमा को हिला देते.

हम में ये जोम रहा,
की अब के वो पुकारेंगे,
उन्हें ये जिद थी के,
हर बार हम सदा देते.

वो तेरा गम था,
की तासीर मेरे लहजे की,
के जिसको हाल सुनाते,
उसे रुला देते.

तुम्हे भुलाना ही अव्वल,
तो दसतारस में नही,
जो इक्तियार में भी होता,
तो क्या भुला देते.

तुम्हारी याद ने,
कोई जवाब ही ना दिया,
मेरे ख़याल के आसूं,
रहे सदा देते.

कानो को मै ता-उम्र,
कोसता शायद,
वो कुछ ना कहते "पाशा"
मगर होटों को हिला देते.

Tuesday, May 11, 2010

ख्वाईश-ए-तमन्ना

किस्से तेरी नज़र ने,
सुनाये ना फिर कभी,
हमने भी दिल के दाग,
दिखाये ना फिर कभी.

ऐ याद-ए-दोस्त आज तू,
जी भर के दिल दूखा,
शायद ये रात हिज्र की,
आये ना फिर कभी.

वो मासूमियत दिल में,
मेरे रहेगी सदा, हाय!!
वापस लौटकर के यह दोस्त,
पाये ना फिर कभी.

मेरी आरज़ू विसाल-ए-दोस्त,
ना किसी हाल निबाई तूने,
तमन्ना-ए- दोस्ती "पाशा",
जागे ना फिर कभी.

Monday, May 10, 2010

राज़-ए-गुफ्तगू

देख लो ख़्वाब मगर,
ख़्वाब का चर्चा न करो,
लोग जल जायेंगे,
सूरज की तम्मना न करो.

वक़्त का क्या है,
किसी पल भी बदल सकता है,
हो सके तुमसे तो तुम,
मुझ पे भरोसा न करो.

झुरिया टूटे हुई अक्स,
की चूब जायेगी,
और कुछ रोज़ अभी,
आईना देखा न करो.

अजनबी लगने लगे तुम्हे,
खूद अपना ही वजूद,
अपने दिन रात को,
इतना अकेला न करो.

ख़्वाब खिलोनो की,
तरह होता है,
ख़्वाब देखा न करो,
ख़्वाब दिखाया न करो.

बे-खयाली में कभी,
उंगलियाँ जल जायेंगी,
राख गुज़रे हुए,
लम्हों की कुरेदा न करो.

मोम के रिश्ते है,
गर्मी में पिगल जायेंगे,
धूप के शहर में "पाशा"
अज़र-ए-तम्मना न करो.

Tuesday, April 27, 2010

भरोसा

बातें गैरों से की आपने,
बुलाया मगर किस लिए आपने.

दुनिया वाले अंदाज़ है,
अपना या गैर किया आपने.

सोच कर तसल्ली ना हुई,
ये क्या कर दिया आपने.

बुला कर मुझे ऐ जालिम,
मेरा दिल दुखाया आपने.

भरोसा न किसी का "पाशा"
दोस्ती का उसलब खूब निभाया आपने.

Monday, April 26, 2010

हैरानी

हैरानिया सही है हम ने,
ये बात निबाही है हम ने.

अब यकीन अपने पर नहीं,
चोट दिल पर खाई है हम ने.

उन्हें किस तरह यकीन हो,
गले फास लगाली है हम ने.

अब यकीन-ए-इक्तियार न हो,
"पाशा" मुश्किलें बढ़ाली है हम ने.

Monday, April 19, 2010

वक़्त

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई.

आईना देख के तसल्ली हुई हम को,
इस घर में जानता है कोई.

पक गया है शज़र पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछलता है कोई.

फिर नज़र में लहू के छींटे है,
तुम को शायद मुघालता है कोई.

देर से गूँजते हैं सन्नाटे "पाशा",
जैसे हम को पुकारता है कोई.

याद

दिल में अब यू तेरे भूले
हुए गम आते हैं,
जैसे खुली हुए आखों में,
ख्वाब आते हैं.

इक इक कर के हुए,
जाते हैं तारे रौशन,
तेरी मंजिल की तरफ,
मेरे क़दम आते हैं.

कुछ हम ही को नहीं
एहसान उठाने का दिमाग,
वो तो जब आते हैं,
माइल-बा-करम आते हैं.

और कुछ देर न गुज़रे,
शब्-ए-फुरक़त से कहो,
दिल भी कम दुखता है,
वो "पाशा" याद भी कम आते हैं.

Saturday, April 17, 2010

चुप्पी

खामोश क्यों खड़ा है,
यु अनजान बात कर,
मर जाएगा वरना,
मेरी मान बात कर.

किसने कहा के बात का,
मतलब भी हो कोई,
इस दौर की यही तो,
है पहचान बात कर.

चुपचाप हार मानना,
मनसब नहीं तेरा,
कुछ शान के नहीं है,
ये शायान बात कर.

क्यु आँख तेरी नम है,
तेरी अपनी हँसी पर,
दिल किसने कर दिया,
तेरा वीरान बात कर.

मेहरबान है खिजा तो,
बहारों का जिक्र ला,
बतला तो क्या है "पाशा"
फूल का फरमान बात कर.

Wednesday, April 7, 2010

दीवानगी

इक पगली मेरा नाम जो ले,
शरमायें भी, घबारायें भी,
गल्लियों-गल्लियों मुझ से मिलने,
आये भी, घबरायें भी.

रात गए घर जाने वाली,
गुमसुम लड़की राहो में,
अपनी उलझी जुल्फों को,
सुलझायें भी, घबरायें भी.

कौन बिछड़ कर फिर लौटेगा,
क्यों आवारा फिरते हो,
रातों को इक चाँद मुझे,
समझायें भी, घबरायें भी.

आने वाली रूत का कितना,
खौफ्फ़ है उसकी आखों में,
जाने वाला दूर से हाथ,
हिलायें भी, घबरायें भी.

Saturday, April 3, 2010

अनकही बातें

चाँद से फूल से या मेरी जुबान से सुनिये,
हर तरफ आपका किस्सा जहाँ से सुनिये.

आपको आता है मुझको सताकर जीना,
ज़िन्दगी क्या ? मुहब्बत की दुवाँ से सुनिये.

मेरी आवाज़ परदा है मेरे चहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहाँ से सुनिये.

क्या जरूरी है की हर परदा उठाया जाए ?
मेरे पाशा ऐ हालात अपने दिल से सुनिये.

Thursday, April 1, 2010

ज़माना

वो ग़ज़ल वालों का अंदाज़ समझते होगे,
चाँद कहते है किसे खूब समझाते होगे.

इतनी मिलती मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होगे.

मै समझता था मुहब्बत की जुबान खुशबू है,
फूल से लोग इसे खूब समझते होगे.

भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले, "पाशा",
आज के प्यार को बदगुमा समझते होगे.

Wednesday, March 31, 2010

इन्साफ

अपनी नज़र से आज गिरा दीजिये मुझे,
मेरी वफ़ा की कुछ तो सजा दीजिये मुझे.

इक तरफ फैसले में इन्साफ था कहाँ,
मेरा कसूर क्या था बता दीजिये मुझे.

मै जा रहा हूँ, आऊँगा शायद ही लौट कर,
ऐसे न बार-बार सदा दीजिये मुझे.

कल की बात और है, मै रहूँ  या ना रहूँ,
आज जितना जी चाहे, रुला दीजिये मुझे.

दोस्ती का यह क्या असर था "पाशा",
दुश्मनी की दुवाँ दीजिये मुझे.

Tuesday, March 30, 2010

तलाश

अपने दोस्त की जुबान सुनता मै,
अब हर रोज़ नई ज़िन्दगी जीता मै.

उन पुराने यादों का, क्या करू दोस्त,
दिल के किसी कोने में छिपाए फिरता मै.

हर सुबह जागा तो नया दिन था,
हुई शाम तो घर नया तलाशता मै.

उनकी पुरानी यादे ना रही,
इक नई जुज़त्जू को जाता मै.

दोस्ती का ये क्या हशर था "पाशा",
नए अक्स को ढूढता मै.

Friday, March 26, 2010

ना-गवार

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे,
तू बहोत देर से मिला है मुझे.

हमसफ़र चाहिए हुज्जूम नहीं,
इक मुसाफिर भी काफिला है मुझे.

दिल धड़कता नहीं सुलगता है,
वो जो ख्वाहिश थी आ बला है मुझे.

लब खुशाहू तो इस यकीन से,
क़त्ल होने का हौसला है मुझे.

कौन जाने के चाहतों में, 'पाशा'
क्या गवाया है क्या मिला है मुझे.

Thursday, March 25, 2010

yaaden jaanib

क्यु दोस्त याद आये इतना,
खो गया क्यु मै इतना.

वो तेरी बाते बड़ी तडपाये,
बता, कोन याद करेगा इतना.

ऐतबार ना था तुझे मेरा,
तो अब क्यों मुन्तजिर इतना.

ये जिगर ऐ 'पाशा' सही,
'तू' पर खुश रहे इतना.

मुश्किलियाँ

वो हमें इस कदर आज़माते रहे,
मुश्किलिया हमारी बढाते रहे.

वो अकेले में भी जो लगाते रहे,
हो न हो हम उनको याद आते रहे.

याद करने पर भी दोस्त आये न याद,
दोस्तों के करम याद आते रहे.

प्यार से उनका इनकार है हक मगर,
लब क्यों देर तक थरथराते रहे.

आखे सुखी हुई नदीया मगर,
तुफ्फां बादस्तूर आते रहे.

थी कमाने हाथों में दुश्मनों की,
तीर मगर अपनो की जानिब से आते रहे.

कर लिया सब ने हम से किनारा मगर,
इक नक्श ए पागोश "पाशा" याद आते रहे.

bichade dost

बिछड़े दोस्त की याद में.................

वो कभी मिल जाए तो क्या कीजिये,
रात-दिन सूरत को देखा कीजिये.

चाँदनी रातो में इक-इक फूल को,
बेखुदी कहती है सजदा कीजिये.

जो तमन्ना बर ना आये उम्रभर,
उम्रभर उसकी तमन्ना कीजिये.

इश्क की रंगियों में डूबकर,
चाँदनी रातों में रोया कीजिये.

हम ही उसके इश्क के काबिल न थे,
क्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिये.

Tuesday, March 23, 2010

wedding and funeral

फर्क सिर्फ इतना सा था.

तेरी डोली उठी,
मेरी मय्यत उठी,
                      फूल तुझ पर भी बरसे,
                      फूल मुझ पर भी बरसे,
फर्क सिर्फ इतना सा था,
तू सज गयी,
मुझे सजाया गया.

तू भी घर को चली,
मै भी घर को चला,
                          फर्क सिर्फ इतना सा था
                          तू उठ के गयी,
                          मुझे उठाया गया.

महफ़िल वहां भी थी,
लोग यहाँ भी थे,

फर्क सिर्फ इतना सा था
                      उनका हसना वहां,
                      इनका रोना यहाँ.

क़ाज़ी उधर भी था, मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढ़े, दो बोल मेरे पढ़े,
तेरा निकाह पढ़ा, मेरा जनाज़ा पढ़ा,

फर्क सिर्फ इतना सा था
तुझे अपनाया गया,
मुझे दफनाया गया.

Nasiib

वो ना दूर है, ना करीब है,
ये जो हिज्र है, ये नसीब है.
(हिज्र = दुरिया)

जो विसाल था, वो तो ख्वाब्ब था,
ये ख़याल कितना अजीब है.
(विसाल=सच्चाई)

वही आसूओं में, दूवाओं में,
वही सुख-दुःख में करीब है.

जो मै सोचता हूँ कह सकू,
मेरा हर्फ़-हर्फ़, रकीब है.
(हर्फ़-हर्फ़ = अन्दर का दुःख) (रकीब= भगवान)

ये फलक ज़मीन को समेट ले,
मेरा दिल भी कितना गरीब है.
(फलक = आसमान)

यादें-ए-दोस्त

ये  दिल ना माने क्या करू,
और, कितनी रातों को तेरे नाम करू.

क्यूँ याद आता है इतना,
कितने, यादों को तेरे नाम करू.

लोग मुझे तेरा दीवाना कहे,
बस में, मेरे कुछ नहीं क्या करू.

अब तू ही इस रोग की दवा दे "पाशा",
दुवाएं, काम ना आए क्या करू.

Saturday, March 20, 2010

aarzoo

पाशा की कलम से ...........

कोई तुम से पूछे, कोन हूँ में?
तुम कह देना, कोई ख़ास नहीं,
इक दोस्त है, कच्चा पक्का सा,
इक झुट है, आधा सच्चा सा,
जज़बात को छिपाए इक परदा,
बस इक बहाना अच्छा सा,
जीवन का ऐसा साथी है,
जो दूर न हो के पास नहीं,
"पाशा" कोई खास नहीं?

Friday, March 19, 2010

mushkilen

खाली वक़्त ने, दिमाग उलझा दिया,
हर वक़्त सोचु, कुछ हो कुछ हो,
इसी कुछ-कुछ ने, दिल को उलझा दिया.

दिन भर ख्यालों का मेला रहा,
कुछ अच्छा कुछ बुरा ही बुरा रहा,
इसी बुरे ने, गैर को पास कर दिया.

दिन में है, यह आलम,
रात में ना जाने क्या हो, "पाशा"
इसी ख़याल ने, रात को उलझा दिया.

दिन का सुकून, रात की नींदे,
यु ही खराब होती नज़र आती है,
इसी मुश्किलों ने, जीना दुशवार कर दिया.

हाय हाय ये बैचैनी, हाय हाय ये दुशवारी,
किस का है ये ख़याल-ए-इल्म,
इसी से 'पाशा' ए जीवन उलझा दिया.

udaasii

अजनबी खौफ फिजाओं में बसा हो जैसे,
शहर का शहर ही भूतों से भरा हो जैसे.

रात के पिछले पहर आती है आवाजे सी,
दूर शहरा में कोई चीख रहा हो जैसे.

दर ओ दीवार पे छाई है उदासी ऎसी,
आज हर घर से जनाज़ा सा उठा हो जैसे.

मुस्कुराता था दोस्ती के खातिर ऐ दोस्त मगर,
दुःख तो चहरे की लकीरों पे सजा हो जैसे.

अब अगर डूब गया भी तो मरूगा ना,
"पाशा" बहते पाणी पे मेरा नाम लिखा हो जैसे.

yaaden

मोहब्बत सबको मिल जाए जरूरी तो नहीं,
वह भी हमें चाहें जरूरी तो नहीं.

एक बेखबर - बेपरवाह दुनिया बनायी थी हमने,
ये हसी दुनिया भूल जाए जरूरी तो नहीं.

उनके साथ का एक-एक पल हसी था मगर,
फिर वो पल मिल जाए जरूरी तो नहीं.

कुछ लोग बहुत याद आते हैं दिल को,
हम भी उनकी याद बन जाए जरूरी तो नहीं.

ऐ दुनिया के हमराही, मुबारक हो राहें तेरी,
"पाशा" भी हमराह हो ये जरूरी तो नहीं.

Thursday, March 18, 2010

Julmat

लब ऐ खामोशी से क्या होंगा,
दिल तो हर हाल में रुसवा होंगा.

ज़ुल्मत ऐ शब् में भी शरमाते हो,
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होंगा.

जिस भी फनकार का शाहकार हो तुम,
उसने सदिया तुम्हे सोचा होंगा.

कीस क़दर कब्र से चटकी है कली,
शाख से गुल कोई टुटा होंगा.

सारी दुनिया हमें पहचानती है,
"पाशा" कोई हमसा भी ना तनहा होंगा.

juunun e dostii

क्या रुखसत ऐ यार की घडी थी,
हसती हुई रात भी रो पड़ी थी.


हम खुद ही हुए तबाह वरना,
दुनिया को हमारी क्या पड़ी थी.


ये ज़ख्म है उन दिनों की यादें,
जब आपसे दोस्ती बढी थी.


जाते तो किधर को तेरे वहसी,
ज़ंजीर ऐ जूनून कड़ी पड़ी थी.


गम थे की आंधिया थी,
"पाशा" ऐ दिल की पंखुड़ियां,
बिखरी पड़ी थी.

chaahat, durrii

कुछ ना किसी से बोलेंगे,
तन्हाई में रो लेंगे,

हम बेराह बारों का क्या?
साथ किसी के हो लेंगे.

खुद तो हुए रुसवा लेकीन,
तेरे भेद ना खोलेंगे.

जीवन जहर भरा सागर,
कब तक अमृत घोलेंगे.

नींद तो क्या आएगी "पाशा"
मौत आई तो सो लेंगे.

Monday, March 15, 2010

यादें

इस तरह सताया है,
परेशान किया है,
ये या की दोस्ती नहीं,
एहसान किया है।

सोचा था की तुम
दूसरों जैसे नहीं होंगे,
तुमने भी वही काम,
मेरे यार किया है।

मुश्कील था बहोत,
मेरे लिए कराना तालूक,
ये काम भी तुमने,
मेरा आसान किया है।

हर रोज़ सजाते है,
तेरे हिज्र में गुंचे,
आखों को तेरी याद में,
"पाशा" ऐ गुलदान किया है।

दुवा

तुम्हारी चाहत मिले न मिले,
तुझे चाहना मेरा नसीब है।

ये बात लकीरों की,
रकीब तो तेरे साथ है।

किससे करे गिला,
हर आदमी तेरे साथ है।

तन्हाई की इनायत ही सही,
हर दुवा तो तेरे साथ है।

जहा ऐ खुशिया मुबारक तुझे,
"पाशा" ऐ मौत तो मेरे साथ है.

Friday, March 12, 2010

दर्द

तर्क ऐ ताल्लुक आमादा है, मैं क्या करू?
क़यामत होने पे आमादा है, मैं क्या करू?

हर बात की वजह हो शायद,
बात बेवजह आमादा है, मैं क्या करू?

ज़िन्दगी खुशबू से भरी हो शायद,
'इंसान' पे वैशियत आमादा है, मैं क्या करू?

बहार पर गुन्छे खिलते हो शायद,
हर वक़्त पतझड़ ही आमादा है, मैं क्या करू?

अब ज़िन्दगी से जी भरा "पाशा" शायद,
ज़िन्दगी ऐ निजात आमादा है, मैं क्या करू ?

जुदाई

टूटे हुए दिलों की, दुवा मेरे साथ है,
दुनिया तेरी तरफ है, खुदा मेरे साथ है।

गूंज तेरे बातों की नहीं है,
तो क्यां हुवा,
सागर के टूटने कि,
सदा मेरे साथ है।

तन्हाई किस को कहते है,
मुझको नहीं पता,
क्या जाने किस हसी कि,
दुवां मेरे साथ है।

पैमाना सामने है,
तो कुछ गम नहीं,
अब पाशा ऐ दर्द कि कोई,
दवा मेरे साथ है.

मगरूर निगाहें

कोई गर जिंदगानी और है,
अपने जी में हमने ठानी और है।

आतिश ऐ ज़हा मैं वो गरमी कहाँ,
दुःख भरी ज़िन्दगी मैं ख़ुशी और है।

इतनी देखी है उनकी रंजिशे,
पर अब कुछ के दिलजमाई और है।

देके ख़त मुहँ देखता है नामाकुल,
कुछ तो पैगाम ऐ जवानी और है।

क़त्ल आमादा है जूनून,
ऐ खुदा तेरी खुदाई और है।

हो चुके "पाशा" ऐ एतिहात तमाम,
ये मगरूर निगाहें मगर और है।

dostii

दोस्ती की परवाह हम करे क्यों?
रहे इंतज़ार ऐ आलम, इत्मीनान करे क्यों ?

परदानशी ना सीखी इसपर चुप फिर भी हम,
अब तमन्ना ऐ दिल करार करे क्यों?

दोस्तों का आलम ये, किनारा है कर जाते,
अब ऐसे मई हम दिल की बात करे क्यों?

अब ऐसे दोस्ती पे एक्तियार नहीं शायद,
अब पाशा ऐ दिल बुत ऐ इंसान से दोस्ती करे क्यों?

zindaadilli

वो मुझसे पूछे तुम लिखते कैसे हो ?
हम कहे तुम लिखाते कैसे हो ?

अपने हस्ती को आप जानिये तो जरा,
अपने शक्शियत को आप पहचानिए तो जरा,
अपने मैं इतने पहलुओं को छिपाते कैसे हो?

इस बज़्म मैं आप सा और कोई नहीं ,
शमा ऐ चिराग आप सा कोई नहीं ,
रोशन ऐ मंजिल आप से है तो,
अपने मैं इतनी आग छिपाते कैसे हो ?

अपने दुनिया में खुश हो पर,
पाशा पूछे अपने गम को छिपाते कैसे हो?