Followers

Requset to Visitor

Please wrote your comments on
posted poetry, inveriably. Your comments may be supported to my
enthusism
.








Friday, October 22, 2010

फ़रियाद

ऐ मेरे दो
जहान के मालिक
किस मस्जीद से
तुझे अजान दूँ

कब सुनेगा
फ़रियाद मेरी
कब होगी
मुराद पूरी

बना के मुझे
क्यु कर भूला
खाने को ठोकरे
किसके सहारे छोड़ा

कहे ऐ बुजुर्ग
मेरे मुझ से
तू है प्यासा
इबादत-ऐ-दिल के

कमी क्या थी
मेरी इबादत में
इतना तो बता
जो छोड़ा मझधार में

फिर पलटकर पूछूँगा
तुझसे क़यामत पर
क्यु कर मुक़दर
मेरा है मझधार पर

इल्ज़ाम तुझ पर
धरूँगा मैं ज़रूर
ये दोष तेरा तो
सज़ा सूनाउगा ज़रूर

तुज्हे भी अकेला
ही जीना होगा
और मिल्कीयत तेरी
दो जहान होगा

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना ..........

    ReplyDelete
  2. प्रभावशाली पंक्तियां हैं...।

    ReplyDelete