फासले ना जाने कितने है,
ये सिलसिले ना जाने कितने है.
अब पास आना मुश्किल है,
ये सजाये ना जाने कितने है.
खामोश आहो से देंगे दूवाये,
आहे असरदार ना जाने कितने है.
काफिला तलाशता हूँ मैं,
राहे आसान ना जाने कितने है.
बिछड़े उनका क्या है "पाशा",
यादों में हम ना जाने कितने है.
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enthusism
Wednesday, July 28, 2010
Saturday, July 17, 2010
मतलब का यार
सच लोगो का कहना हुआ है,
मतलब का तू यार हुआ है.
खुशियों ने मुह मोड़ा है,
दिल टूटकर जार-जार हुआ है.
यह क्या कह दिया तूने के,
नश्तर सा चुबा हुआ है.
क्यु इतना गुरुर है तुझे,
क्या तू खुदा हुआ है.
दुवाए देते है तुझे "पाशा"
नाम मेरा बदनाम हुआ है.
मतलब का तू यार हुआ है.
खुशियों ने मुह मोड़ा है,
दिल टूटकर जार-जार हुआ है.
यह क्या कह दिया तूने के,
नश्तर सा चुबा हुआ है.
क्यु इतना गुरुर है तुझे,
क्या तू खुदा हुआ है.
दुवाए देते है तुझे "पाशा"
नाम मेरा बदनाम हुआ है.
Thursday, July 8, 2010
साथी
साथ निभाया हर एक वक़्त के बाद,
ज़िन्दगी कैसे कटे बिछड़ने के बाद.
जी भर गया मेरा तन्हाई से अब,
कौन जिये ज़िन्दगी मर जाने के बाद.
दुनिया से निभाई हर वफ़ा मैंने,
क्या याद ताल्लुक ऐ खुदगर्जी के बाद.
'पाशा' लौटकर तुझे दोस्त बनायेंगे,
इस ज़िन्दगी से निजात के बाद.
ज़िन्दगी कैसे कटे बिछड़ने के बाद.
जी भर गया मेरा तन्हाई से अब,
कौन जिये ज़िन्दगी मर जाने के बाद.
दुनिया से निभाई हर वफ़ा मैंने,
क्या याद ताल्लुक ऐ खुदगर्जी के बाद.
'पाशा' लौटकर तुझे दोस्त बनायेंगे,
इस ज़िन्दगी से निजात के बाद.
Tuesday, July 6, 2010
आखों का भरम
कुछ आखों का भरम रहने दो,
मुझको और पल दो पल जीने दो.
यादों के नस्तर दिल पे चलने दो,
हम डूबे तो अब डूब जाने दो.
इस बात से तुम को हया होने दो,
हम जान से गुजरते है गुजर जाने दो.
वक़्त का तकाजा ये सबब रहने दो,
आज तुम्हे कुछ पल बेवफा कहने दो.
वक़्त बदलता है तो बदलने दो,
गम ऐ गुबार दिल से बहने दो.
होशो में पूछेगें तुझे सबब दो,
पर आज इस बेखुदी में मरने दो.
उस तरफ की खुशिया रहने दो,
इस तरफ की गम ऐ रुखसत सहने दो.
महखाने के दर खुले रहने दो,
सरबत ऐ सुरूर से पहचान होने दो.
ये आखिरी 'पाशा' ऐ सलाम लेने दो,
फिर आस का कोई दिप जलने दो.
मुझको और पल दो पल जीने दो.
यादों के नस्तर दिल पे चलने दो,
हम डूबे तो अब डूब जाने दो.
इस बात से तुम को हया होने दो,
हम जान से गुजरते है गुजर जाने दो.
वक़्त का तकाजा ये सबब रहने दो,
आज तुम्हे कुछ पल बेवफा कहने दो.
वक़्त बदलता है तो बदलने दो,
गम ऐ गुबार दिल से बहने दो.
होशो में पूछेगें तुझे सबब दो,
पर आज इस बेखुदी में मरने दो.
उस तरफ की खुशिया रहने दो,
इस तरफ की गम ऐ रुखसत सहने दो.
महखाने के दर खुले रहने दो,
सरबत ऐ सुरूर से पहचान होने दो.
ये आखिरी 'पाशा' ऐ सलाम लेने दो,
फिर आस का कोई दिप जलने दो.
Saturday, July 3, 2010
बेदारी
इक ग़ज़ल उस पे लिखू, दिल का तकाजा है बहुत,
इन दिनों खुद से बिचड, जाने का डर है बहुत.
रात हो, दिन हो, गफलत हो की बेदारी हो,
उसको देखा तो नहीं है सोचा है बहुत.
तशनगी के भी मुकामत है क्या क्या, यानी,
कभी दरया नहीं काफी, कभी कतरा भी है बहुत.
मेरे हाथो की लकीरों के इजाफे है गवाह,
'पाशा' पत्थरो की तरह खुद को तराशा है बहुत.
इन दिनों खुद से बिचड, जाने का डर है बहुत.
रात हो, दिन हो, गफलत हो की बेदारी हो,
उसको देखा तो नहीं है सोचा है बहुत.
तशनगी के भी मुकामत है क्या क्या, यानी,
कभी दरया नहीं काफी, कभी कतरा भी है बहुत.
मेरे हाथो की लकीरों के इजाफे है गवाह,
'पाशा' पत्थरो की तरह खुद को तराशा है बहुत.
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