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Wednesday, August 18, 2010

आरजू

आँख से दूर ना हो दिल से उतर जाएगा,
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा.

इतना मायूस ना हो खिलावत-ऐ-गम से अपनी,
तू कभी खूद को देखेगा तो डर जाएगा.

तुम सर-ऐ-राह-ऐ-वफ़ा देखते रह जाओगे,
और वो बाम-ऐ-रफाकत से उतर जाएगा.

जिंदगी तेरी अता है तो ये जाननेवाला,
तेरी बक्षिश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा.

डूबते डूबते कश्ती को उछाल दे दूँ,
मैं नहीं तो कोई तो साहिल पे उतर जाएगा.

ज़ख़्म लाजिम है मगर दुःख है क़यामत का "पाशा"
ज़ालिम अब के भी ना रोयेंगा तो मर जाएगा.

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है , क्या ये सचमुच आपने ही लिखी है ? अगर हाँ तो वाकई काबिले तारीफ़ !

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  2. Bahut hi behraeen lafzo mein dhala hai huzoor. wakai bahut badhiya hai.

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