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Monday, June 14, 2010

वाकया

शाम से आज सांस भारी है,
बेक़रारी है बेक़रारी है.

आप के बाद हर घडी हमने,
आप के साथ ही गुजारी है.

रात को दे दो चाँदनी कि रिदा,
दिन की चादर अभी उतारी है.

कल का हर वाकया तुम्हारा था,
आज की दास्ता 'पाशा' हमारी है.

8 comments:

  1. ख़ूबसूरत बह्र में ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
    मगर …
    रात को दे दो चाँदनी किरिदा,
    को ऐसे कहते तो शायद बात आसानी से समझ आ जाती
    रात को चांदनी की दे दो रिदा
    पूरी ग़ज़ल अच्छी है , लेकिन मक़्ते के शे'र में बात बिगड़ गई…
    आज की दास्ता 'पाशा' हमारी है.
    बह्र क़ाइम नहीं रह पाई , बुरा न मानें ।

    वक़्त 'पाशा' तुम्हारा था कल तक
    आज से बात हर हमारी है

    इसे यूं , या किसी और तरह से कह सकते थे ।
    बहरहाल , आपका ब्लॉग के संसार में ख़ैरमक़्दम है !
    कभी बात की इच्छा हो तो मेल करें…
    swarnkarrajendra@gmail.com
    और मेर ब्लॉग शस्वरं पर भी आपका स्वागत है …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  2. "आप के बाद हर घडी हमने,
    आप के साथ ही गुजारी है.

    रात को दे दो चाँदनी किरिदा,
    दिल की चादर अभी उतारी है.

    कल का हर वाकया तुम्हारा था,
    आज की दास्ता 'पाशा' हमारी है."

    बहुत खूब

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  3. khoobasoorat gajal---hindi blog jagat men apka svagat karate huye khushee ho rahee hai.
    Poonam

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  4. ब्लॉग की दुनिया में ख़ुश आमदीद ,

    आप के बाद हर घडी हमने,
    आप के साथ ही गुजारी है.

    ग़ज़ल की तमामतर रानाइयों को निभाता हुआ शेर है ये
    लेकिन मक़ते के मामले में मैं राजेंद्र जी से मुत्तफ़िक़ हूं ,

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. This comment has been removed by a blog administrator.

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  7. "आप के बाद हर घडी हमने,
    आप के साथ ही गुजारी है.

    kya bat hai huzoor.

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