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Saturday, August 21, 2010

हिदायते

किस तरह मै तुझे बताऊ,
चाहतो का सिलसिला आ बताऊ.

एक नज़र ही है ये जान लो,
उम्र भर अश्क का काफिला बताऊ.

सदा तो आती रहेगी चारसू,
दिल पर गुजरी घटाये बताऊ.

बरसी जो है आँख-ऐ-सौगाते,
चश्म-ऐ-बरसात को बताऊ.

हर समय की वो हिदायते,
या ये उनका है इलज़ाम बताऊ.

रफ़ाक़त के ना काबिल ही समझा,
अपने दिल की उलझन को बताऊ.

दिल को पर दुनिया से छुपाना,
और "पाशा" अपनो का भरम बताऊ.

Wednesday, August 18, 2010

आरजू

आँख से दूर ना हो दिल से उतर जाएगा,
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा.

इतना मायूस ना हो खिलावत-ऐ-गम से अपनी,
तू कभी खूद को देखेगा तो डर जाएगा.

तुम सर-ऐ-राह-ऐ-वफ़ा देखते रह जाओगे,
और वो बाम-ऐ-रफाकत से उतर जाएगा.

जिंदगी तेरी अता है तो ये जाननेवाला,
तेरी बक्षिश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा.

डूबते डूबते कश्ती को उछाल दे दूँ,
मैं नहीं तो कोई तो साहिल पे उतर जाएगा.

ज़ख़्म लाजिम है मगर दुःख है क़यामत का "पाशा"
ज़ालिम अब के भी ना रोयेंगा तो मर जाएगा.