फासले ना जाने कितने है,
ये सिलसिले ना जाने कितने है.
अब पास आना मुश्किल है,
ये सजाये ना जाने कितने है.
खामोश आहो से देंगे दूवाये,
आहे असरदार ना जाने कितने है.
काफिला तलाशता हूँ मैं,
राहे आसान ना जाने कितने है.
बिछड़े उनका क्या है "पाशा",
यादों में हम ना जाने कितने है.
सुन्दर प्रस्तुति ,,,,,एक अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली ,,,,आभार ,,,,शब्दों के इस हसीन सफ़र में आज से मैं भी आपके साथ हूँ
ReplyDeleteग़ज़ल दिल को छू गई।
ReplyDeleteबेहद पसंद आई।