ऐसे ही जिंदगी कटती रही,
अपने आप से शिकायते होती रही.
तेरा कसूर क्या इस में,
क्यु कर नसीबो की डोर टूटती रही.
अब सोच के हासिल भी नहीं,
दिल की मुराद पूरी कब होती रही.
अपनी ज़ुतजु में जीना है,
आरज़ू जिंदगी की छूटती रही.
मौत भी नहीं आती है,
ये तेरी तरह खिलवाड़ करती रही.
बता ऐ हम नफज़ मेरे,
मुझ से कौन सी कमी बाकी रही.
ना काबिल-ऐ-दुनिया मेरी,
मुझ पे यू बोझ बनती रही.
ये तोहफा तेरा कबूल है,
मेरी आहे युही मगर जलती रही.
तेरा दिल भी तरसेगा कभी,
मेरी दर्द-ऐ-तड़प यह कहती रही.
सदके तेरे ये जिंदगी है,
मौत पाशा-ऐ-आगोश से लिपटी रही.
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