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Friday, April 8, 2011

खैरियत की दूवाँ

मैंने मांगी है दूवाँ,
तेरे खैरियत की,
खुश रहे तू सदा,
खुश ही रहने की.

तूने जो अंजाम दिया,
उस में ना जल जाने की.

मेरा जो है यहाँ,
तुझ को मिल जाने की.

दर्द-ऐ-एहसास नहीं,
ये सिला भी भूल जाने की.

"पाशा" अब बीत गये,
दिल सुहाने दिन होने की.

ग़मगीन ख़ुशी

हैरत में हूँ मैं पड़ा,
क्यु तुझसे हूँ जुदा.

अब दुरी जिंदगी भर की,
किस उलझन में हूँ खड़ा.

ये रास्ते कट ही जायेंगे,
ग़मगीन ख़ुशी में सदा.

दस्तूर-ऐ-दुनिया है तू,
नाउम्मीदों में मैं डूबा.

सोचना पड़ा

दिल उनसे जा मिला,
तो मुझे सोचना पड़ा,
एक सिलसिला चला,
तो मुझे सोचना पड़ा.

उनसे वफाए की,
तो बुरा मानने लगे,
करने लगे गिला,
तो मुझे सोचना पड़ा.

वो तो जरासी बातपे,
नाराज़ हो गए,
जब ऐसा गुल खिला,
तो मुझे सोचना पड़ा.

झगड़ा तो हुस्नो इश्क में,
होता ही है मगर,
आया जो फासला,
तो मुझे सोचना पड़ा.

बनके भी मेरे,
बन ना सके संगदिल सनम,
ऐसा मिला सिला,
तो मुझे सोचना पड़ा.