आज वो हमसे मिले शर्म-सार होकर,
निगाहें राहगीरों पर थी अनजान होकर.
वक़्त का तकाजा था सो चूप रह गए,
करम यारों के देखे बेजान होकर.
वो बेदिली सही के हाय हाय,
इंसान-ऐ-बुत हुए नादान होकर.
यारों की फितरते बदलते देखी,
जिये जाते है 'पाशा' पशेमान होकर.
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