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Monday, June 14, 2010

गुबार

मेरा क्या था तेरे हिसाब में,
मेरा सांस-सांस उधार था,
जो गुजर गया वो तो वक़्त था,
जो बचा रहा वो गुबार था.

तेरी आरज़ू में उड़े तो थे,
चंद खुश्क पत्ते चरार के,
जो हवा के दोष से गिर पड़ा,
उन में एक ये ख़ाक सार था.

वो उदास उदासी की शाम थी,
वो ही चेहरा एक चराग था,
और कुछ नहीं था जमीन पर,
एक आसमा का गुबार था.

बड़े सूफियो से ख़याल थे,
और बया भी उसका कमाल था,
कहा मैंने कब वही था वो,
एक शख्श था बादाखार था.

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