मुश्किलिया जिंदगी में, यू चल पड़े है,
हम संभले ही ना थे, के फिर गिर पड़े है.
मंजिल तो सामने, दिखाई देती है,
पर रास्तो में, गुब्बार ही गुब्बार भरे पड़े है.
किसकी बात का भरोसा, रखे ये दिल,
चेहरे पे नकाब ओढ़े, सारे दोस्त पड़े है.
अब जिंदगी, इक बदगुमा सी लगे,
और, मौत का साया भी "पाशा",
दूर साहिल पे पड़े है.
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