दोस्ती की परवाह हम करे क्यों?
रहे इंतज़ार ऐ आलम, इत्मीनान करे क्यों ?
परदानशी ना सीखी इसपर चुप फिर भी हम,
अब तमन्ना ऐ दिल करार करे क्यों?
दोस्तों का आलम ये, किनारा है कर जाते,
अब ऐसे मई हम दिल की बात करे क्यों?
अब ऐसे दोस्ती पे एक्तियार नहीं शायद,
अब पाशा ऐ दिल बुत ऐ इंसान से दोस्ती करे क्यों?
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