कोई गर जिंदगानी और है,
अपने जी में हमने ठानी और है।
आतिश ऐ ज़हा मैं वो गरमी कहाँ,
दुःख भरी ज़िन्दगी मैं ख़ुशी और है।
इतनी देखी है उनकी रंजिशे,
पर अब कुछ के दिलजमाई और है।
देके ख़त मुहँ देखता है नामाकुल,
कुछ तो पैगाम ऐ जवानी और है।
क़त्ल आमादा है जूनून,
ऐ खुदा तेरी खुदाई और है।
हो चुके "पाशा" ऐ एतिहात तमाम,
ये मगरूर निगाहें मगर और है।
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