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Friday, March 19, 2010

udaasii

अजनबी खौफ फिजाओं में बसा हो जैसे,
शहर का शहर ही भूतों से भरा हो जैसे.

रात के पिछले पहर आती है आवाजे सी,
दूर शहरा में कोई चीख रहा हो जैसे.

दर ओ दीवार पे छाई है उदासी ऎसी,
आज हर घर से जनाज़ा सा उठा हो जैसे.

मुस्कुराता था दोस्ती के खातिर ऐ दोस्त मगर,
दुःख तो चहरे की लकीरों पे सजा हो जैसे.

अब अगर डूब गया भी तो मरूगा ना,
"पाशा" बहते पाणी पे मेरा नाम लिखा हो जैसे.

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