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Tuesday, March 30, 2010

तलाश

अपने दोस्त की जुबान सुनता मै,
अब हर रोज़ नई ज़िन्दगी जीता मै.

उन पुराने यादों का, क्या करू दोस्त,
दिल के किसी कोने में छिपाए फिरता मै.

हर सुबह जागा तो नया दिन था,
हुई शाम तो घर नया तलाशता मै.

उनकी पुरानी यादे ना रही,
इक नई जुज़त्जू को जाता मै.

दोस्ती का ये क्या हशर था "पाशा",
नए अक्स को ढूढता मै.

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