वो ग़ज़ल वालों का अंदाज़ समझते होगे,
चाँद कहते है किसे खूब समझाते होगे.
इतनी मिलती मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होगे.
मै समझता था मुहब्बत की जुबान खुशबू है,
फूल से लोग इसे खूब समझते होगे.
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले, "पाशा",
आज के प्यार को बदगुमा समझते होगे.
badhiya.................
ReplyDeletebahot badhiya
ReplyDelete