जिंदगी एक बददुवा सी लगती हैं,
हर ख़ुशी अधूरी सी लगती हैं.
बदल जाये ये हालात मेरे,
हर ठोकर चाहत सी लगती हैं.
अब रातो को हूँ जागता मैं,
नीद सुलगते संदल सी लगती हैं.
हर वक़्त दिल ने पुकारा तुझे,
धड़कने सीने में जलती सी लगती हैं.
कब बुझे आग मेरे दिल की,
अपनी राख भी अजनबी सी लगती हैं.
किस दिशा मे "पाशा" उठे कदम,
मौत भी मुझे परायी सी लगती हैं.
"पाशा" नशिकेत जी
ReplyDeleteनमस्कार !
कैसे हैं ? आशा है स्वस्थ-सानन्द होंगे ।
बहुत लगन और मेहनत से लिखते हैं आप ,
… जितनी प्रशंसा करूं कम है ।
यहां प्रस्तुत रचना भी बहुत अच्छे भाव लिये हुए है ।
अब रातो को हूं जागता मैं,
नीद सुलगते संदल सी लगती हैं.
वाह वाह ! क्या नई बात कही है !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार