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Friday, April 8, 2011

खैरियत की दूवाँ

मैंने मांगी है दूवाँ,
तेरे खैरियत की,
खुश रहे तू सदा,
खुश ही रहने की.

तूने जो अंजाम दिया,
उस में ना जल जाने की.

मेरा जो है यहाँ,
तुझ को मिल जाने की.

दर्द-ऐ-एहसास नहीं,
ये सिला भी भूल जाने की.

"पाशा" अब बीत गये,
दिल सुहाने दिन होने की.

1 comment:

  1. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

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