Followers

Requset to Visitor

Please wrote your comments on
posted poetry, inveriably. Your comments may be supported to my
enthusism
.








Tuesday, April 27, 2010

भरोसा

बातें गैरों से की आपने,
बुलाया मगर किस लिए आपने.

दुनिया वाले अंदाज़ है,
अपना या गैर किया आपने.

सोच कर तसल्ली ना हुई,
ये क्या कर दिया आपने.

बुला कर मुझे ऐ जालिम,
मेरा दिल दुखाया आपने.

भरोसा न किसी का "पाशा"
दोस्ती का उसलब खूब निभाया आपने.

Monday, April 26, 2010

हैरानी

हैरानिया सही है हम ने,
ये बात निबाही है हम ने.

अब यकीन अपने पर नहीं,
चोट दिल पर खाई है हम ने.

उन्हें किस तरह यकीन हो,
गले फास लगाली है हम ने.

अब यकीन-ए-इक्तियार न हो,
"पाशा" मुश्किलें बढ़ाली है हम ने.

Monday, April 19, 2010

वक़्त

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई.

आईना देख के तसल्ली हुई हम को,
इस घर में जानता है कोई.

पक गया है शज़र पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछलता है कोई.

फिर नज़र में लहू के छींटे है,
तुम को शायद मुघालता है कोई.

देर से गूँजते हैं सन्नाटे "पाशा",
जैसे हम को पुकारता है कोई.

याद

दिल में अब यू तेरे भूले
हुए गम आते हैं,
जैसे खुली हुए आखों में,
ख्वाब आते हैं.

इक इक कर के हुए,
जाते हैं तारे रौशन,
तेरी मंजिल की तरफ,
मेरे क़दम आते हैं.

कुछ हम ही को नहीं
एहसान उठाने का दिमाग,
वो तो जब आते हैं,
माइल-बा-करम आते हैं.

और कुछ देर न गुज़रे,
शब्-ए-फुरक़त से कहो,
दिल भी कम दुखता है,
वो "पाशा" याद भी कम आते हैं.

Saturday, April 17, 2010

चुप्पी

खामोश क्यों खड़ा है,
यु अनजान बात कर,
मर जाएगा वरना,
मेरी मान बात कर.

किसने कहा के बात का,
मतलब भी हो कोई,
इस दौर की यही तो,
है पहचान बात कर.

चुपचाप हार मानना,
मनसब नहीं तेरा,
कुछ शान के नहीं है,
ये शायान बात कर.

क्यु आँख तेरी नम है,
तेरी अपनी हँसी पर,
दिल किसने कर दिया,
तेरा वीरान बात कर.

मेहरबान है खिजा तो,
बहारों का जिक्र ला,
बतला तो क्या है "पाशा"
फूल का फरमान बात कर.

Wednesday, April 7, 2010

दीवानगी

इक पगली मेरा नाम जो ले,
शरमायें भी, घबारायें भी,
गल्लियों-गल्लियों मुझ से मिलने,
आये भी, घबरायें भी.

रात गए घर जाने वाली,
गुमसुम लड़की राहो में,
अपनी उलझी जुल्फों को,
सुलझायें भी, घबरायें भी.

कौन बिछड़ कर फिर लौटेगा,
क्यों आवारा फिरते हो,
रातों को इक चाँद मुझे,
समझायें भी, घबरायें भी.

आने वाली रूत का कितना,
खौफ्फ़ है उसकी आखों में,
जाने वाला दूर से हाथ,
हिलायें भी, घबरायें भी.

Saturday, April 3, 2010

अनकही बातें

चाँद से फूल से या मेरी जुबान से सुनिये,
हर तरफ आपका किस्सा जहाँ से सुनिये.

आपको आता है मुझको सताकर जीना,
ज़िन्दगी क्या ? मुहब्बत की दुवाँ से सुनिये.

मेरी आवाज़ परदा है मेरे चहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहाँ से सुनिये.

क्या जरूरी है की हर परदा उठाया जाए ?
मेरे पाशा ऐ हालात अपने दिल से सुनिये.

Thursday, April 1, 2010

ज़माना

वो ग़ज़ल वालों का अंदाज़ समझते होगे,
चाँद कहते है किसे खूब समझाते होगे.

इतनी मिलती मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होगे.

मै समझता था मुहब्बत की जुबान खुशबू है,
फूल से लोग इसे खूब समझते होगे.

भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले, "पाशा",
आज के प्यार को बदगुमा समझते होगे.