इक पगली मेरा नाम जो ले,
शरमायें भी, घबारायें भी,
गल्लियों-गल्लियों मुझ से मिलने,
आये भी, घबरायें भी.
रात गए घर जाने वाली,
गुमसुम लड़की राहो में,
अपनी उलझी जुल्फों को,
सुलझायें भी, घबरायें भी.
कौन बिछड़ कर फिर लौटेगा,
क्यों आवारा फिरते हो,
रातों को इक चाँद मुझे,
समझायें भी, घबरायें भी.
आने वाली रूत का कितना,
खौफ्फ़ है उसकी आखों में,
जाने वाला दूर से हाथ,
हिलायें भी, घबरायें भी.
badhiyaa...........
ReplyDeletepyar se jo kaho
ReplyDeletegood
ReplyDeletelafz nahi mil rahe ke kis tarah tarif karu.
ReplyDeletetarif karne se woh dar rahe hai is kadar,
kahi ulfat na samaz le koi yeh soch kar,
sharmaye bhi, ghabraye bhi.