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Saturday, May 15, 2010

अंजाम

जब से उसने शहर को छोड़ा,
हर रास्ता सुनसान हुआ,
अपना क्या है सारे शहर का,
एक जैसा नुकसान हुआ.

मेरे हाल पे हैरत कैसी,
दर्द के तनहा मौसम में,
पत्थर भी रो पड़े है,
इंसान तो फिर इंसान हुआ.

उस के ज़ख्म छुपा के रखिये,
खुद उस शख्स की नज़रों से,
उस से कैसा शिकवा कीजिये,
वो तो अभी नादान हुआ.

यु भी कम मिलता था,
वो इस शहर के लोगों में,
लेकीन मेरे सामने आकर,
"पाशा" और ही कुछ अंजाम हुआ.

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