उस बादाखार को सोच ही रहे थे,
हुई क़यामत के वो सामने थे.
पाया हमने याद ओ असर आज,
जो बरसो तनहा छोड़ गए थे.
दिल में एक हूक जाग उठी तो है,
पर वो आज मिले जैसे पराये थे.
उम्मीद ओ चश्म की बुझ है गयी,
और वो कहे के साथी जनमों के थे.
आज भी मुझ से वो अनजाने लगे,
और भी 'पाशा' ऐ दिल में वीराने थे.
bahut sundar..
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