लब ऐ खामोशी से क्या होंगा,
दिल तो हर हाल में रुसवा होंगा.
ज़ुल्मत ऐ शब् में भी शरमाते हो,
दर्द चमकेगा तो फिर क्या होंगा.
जिस भी फनकार का शाहकार हो तुम,
उसने सदिया तुम्हे सोचा होंगा.
कीस क़दर कब्र से चटकी है कली,
शाख से गुल कोई टुटा होंगा.
सारी दुनिया हमें पहचानती है,
"पाशा" कोई हमसा भी ना तनहा होंगा.
khubb likhaa hai dil ko chhu gaya
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